1,300 किलोमीटर का सफर, 25 जिले और 110 सीटें... विफल साबित हुई राहुल की यात्रा?
बिहार चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए तगड़ा झटका साबित हुए हैं. यह हार केवल पार्टी तक सीमित नहीं है, बल्कि राहुल गांधी के लिए भी एक बड़ी राजनीतिक असफलता मानी जा रही है. राहुल गांधी ने इस साल की शुरुआत में बिहार का दौरा किया था और अगस्त में 'मतदाता अधिकार यात्रा' निकाली थी. उनका दावा था कि भाजपा चुनावों में वोट चोरी कर रही है और चुनाव आयोग भी इस पर ध्यान नहीं दे रहा.

नई दिल्ली: बिहार चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए तगड़ा झटका साबित हुए हैं. यह हार केवल पार्टी तक सीमित नहीं है, बल्कि राहुल गांधी के लिए भी एक बड़ी राजनीतिक असफलता मानी जा रही है. राहुल गांधी ने इस साल की शुरुआत में बिहार का दौरा किया था और अगस्त में 'मतदाता अधिकार यात्रा' निकाली थी. उनका दावा था कि भाजपा चुनावों में वोट चोरी कर रही है और चुनाव आयोग भी इस पर ध्यान नहीं दे रहा. कांग्रेस को उम्मीद थी कि राहुल गांधी की यह यात्रा वैसे ही सकारात्मक असर डालेगी, जैसे 'भारत जोड़ो यात्रा' ने लोकसभा 2024 और तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान डाला था.
राहुल गांधी का नहीं चला जादू
कांग्रेस नेता की यह यात्रा सासाराम से शुरू होकर पटना में समाप्त हुई थी. लगभग 1,300 किलोमीटर का सफर तय करते हुए यह यात्रा 25 जिलों और 110 विधानसभा क्षेत्रों से गुज़री. लेकिन, विडंबना यह है कि जिस रास्ते से राहुल गांधी गुजरे, उन इलाकों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. मौजूदा रुझानों के अनुसार, कांग्रेस 61 सीटों में से केवल चार सीटों- वाल्मीकिनगर, किशनगंज, मनिहारी और बेगूसराय पर ही आगे नजर आ रही है. जबकि कांग्रेस ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
रणनीति कारगर साबित नहीं हुई
कांग्रेस का मानना था कि राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्राओं' से पार्टी को बड़ी ताकत मिली थी. 2022 और 2024 के बीच निकली इस यात्राओं के मार्ग में आने वाली 41 सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी. तेलंगाना में तो पार्टी ने सरकार तक बना ली थी, लेकिन बिहार में यह रणनीति बिल्कुल कारगर नहीं साबित हुई.
एनडीए का शानदार प्रदर्शन
दूसरी ओर एनडीए गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया. भाजपा और जेडीयू, दोनों ने लगभग अपनी-अपनी अधिकांश सीटों पर बढ़त बना ली है. भाजपा 98 और जेडीयू 85 सीटों पर आगे है, जबकि दोनों ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था. एनडीए के सहयोगी दलों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया. चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) 22 सीटों पर आगे है, जबकि उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम 3 सीटों पर और जीतन राम मांझी की हम पार्टी 5 सीटों पर आगे है.
शायद कांग्रेस द्वारा अभी अपनी हार पर औपचारिक समीक्षा नहीं की गई होगी, लेकिन कुछ कारण साफ नजर आते हैं.
1. महागठबंधन के दलों के बीच तालमेल की कमी दिखी.
2. कांग्रेस का तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में स्वीकार करने में झिझक दिखाना. इससे मतदाताओं में यह भ्रम पैदा हुआ कि गठबंधन वास्तव में एकजुट है या नहीं है.
3. रणनीति और संदेश का अभाव भी साफ दिखा. राहुल गांधी की यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह तो जगाया था, लेकिन चुनाव नजदीक आते-आते यह ऊर्जा कम हो गई. गठबंधन के भीतर खींचतान, गुटबाजी और नेतृत्व पर अस्पष्टता की वजह से मतदाताओं में विश्वास नहीं बन पाया, जिसका नुकसान कांग्रेस और राजद दोनों को उठाना पड़ा.


