सुप्रीम कोर्ट की दरियादिली! 104 साल के बुजुर्ग को दी अंतरिम जमानत, परिवार के साथ मनाएगा Birthday
सुप्रीम कोर्ट ने दरियादिली दिखाते हुए 104 साल के बुजुर्ग को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. बुजुर्ग को 1994 में दोषी ठहराया गया था. उस समय वे उम्र 68 साल के थे. उन्हें इस मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.
देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने 104 साल के व्यक्ति को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. कोर्ट ने यह फैसला आरोपी की उम्र को देखते हुए लिया है. ताकि वो अपना 104वां जन्मदिन अपने परिवार के साथ मना सके और जीवन का अंतिम काल शांति से परिवार के साथ गुजार सके.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ के समक्ष जब पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के एक गांव के बुजुर्ग रसिक चंद्र मंडल की अर्जी आई तो कोर्ट ने भी दरियादिली दिखाई. क्योंकि मंडल को बढ़ती उम्र में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के कारण जेल से सुधार गृह में शिफ्ट कर दिया गया था.
1994 में सुनाई गई थी आजीवन कारावास की सजा
रसिक चंद्र मंडल को 1988 के हत्याकांड में 1994 में दोषी ठहराया गया था. उस समय वे उम्र 68 साल के थे. उन्हें इस मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. इसके बाद उन्होंने अपनी सजा को चुनौती देते हुए कई बार अदालत का दरवाजा खटखटाया. उनकी अपील को 2018 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली थी.
बेटे ने लगाई अर्जी
अब जब मंडल ने अपने 45 साल के बेटे की ओर से अर्जी लगवाई कि 104 साल की उम्र में तो उसके पिता को रिहा कर दिया जाए, तो कोर्ट ने मालदा जिले के मानिकचक में दर्ज हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए मंडल को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया.
1920 में हुआ था जन्म
रिकॉर्ड्स के मुताबिक रसिक चंद्र मंडल का जन्म 1920 में हुआ. उस साल कांग्रेस ने फिरंगी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया था. आजादी की लड़ाई के दौरान जन्मे इस शख्स ने सौ साल बाद अपनी आजादी की गुहार सुप्रीम कोर्ट से लगाई और आखिरकार वो इसमें कामयाब हुआ.
2020 में बुजुर्ग ने सुप्रीम कोर्ट से रिहाई की मांग की
मंडल ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक नई अपील दायर की थी जिसमें उसने अपनी बुढ़ापे और बीमारियों का हवाला देते हुए समय से पहले रिहाई की मांग की थी. 99 साल की उम्र में उसने कोर्ट से राहत की गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार से रिपोर्ट मांगी और 2021 में इसे गंभीरता से लिया.