वायु प्रदूषण को लेकर SC में सुनवाई, कोर्ट ने कहा- लाखों मजदूरों की रोजी-रोटी छिन जाएगी
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण को लेकर सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्माण कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग को खारिज कर दिया है. कोर्ट का मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा और विकास दोनों के बीच एक संतुलन बनाना बेहद जरूरी है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण को लेकर सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्माण कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग को खारिज कर दिया है. कोर्ट का मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा और विकास दोनों के बीच एक संतुलन बनाना बेहद जरूरी है. पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम अदालत में विशेषज्ञ नहीं बैठे हैं और हर साल दिल्लीका प्रदूषण प्रबंधन नहीं चला सकते. यह असल में केंद्र सरकार का काम है.
वायु प्रदूषण पर SC की सख्त टिप्पणी
निर्माण गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से लाखों मजदूरों और रोज कमाने-खाने वाले लोगों की आजीविका प्रभावित होगी, जिससे बड़ा सामाजिक और आर्थिक संकट पैदा हो सकता है. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने भी बताया कि विकसित देशों, जैसे अमेरिका के प्रदूषण मानक भारत जैसे विकासशील देश पर लागू नहीं किए जा सकते. उन्होंने कहा कि असली चुनौती यह है कि मानवाधिकारों को नुकसान पहुंचाए बिना प्रदूषण को किस हद तक कम किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 19 नवंबर तक दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण से निपटने के लिए एक मजबूत, लंबी अवधि वाली और स्थायी योजना तैयार करने का सख्त निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि अब केवल अस्थायी और तात्कालिक कदमों से काम नहीं चलेगा, बल्कि स्थायी समाधान जरूरी है. साथ ही अदालत ने GRAP यानी ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान को और सख्ती से लागू करने की बात कही.
मौजूदा प्रणाली पर उठाए सवाल
कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण मापने वाली मौजूदा प्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठाए. अमिकस क्यूरी ने बताया कि कई AQI मॉनिटरिंग मशीनें 999 से ज़्यादा की रीडिंग दिखाने में सक्षम ही नहीं हैं. कुछ जगहों पर तो पानी छिड़ककर हवा की गुणवत्ता को अच्छा दिखाने की कोशिश भी की जा रही है. इस पर पीठ ने कहा कि ये उपकरण दिल्ली जैसी गंभीर स्थिति वाले शहर के लिए उपयुक्त नहीं लगते. अदालत ने केंद्र, CPCB और CAQM से 19 नवंबर तक यह जानकारी देने को कहा है कि कौन-कौन से मॉनिटरिंग उपकरण लगाए गए हैं, उनकी क्षमता क्या है और क्या वे अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरते हैं.
19 नवंबर को अगली सुनवाई होगी
एक याचिकाकर्ता की ओर से कैलिफोर्निया मॉडल लागू करने और पूरे साल GRAP-1 स्तर की पाबंदियां लगाने की मांग की गई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे मंजूर नहीं किया. अदालत ने कहा कि भारत की परिस्थितियां अलग हैं और उन्हें विकसित देशों से सीधे तौर पर नहीं जोड़ा जा सकता. पराली जलाने पर पंजाब और हरियाणा की रिपोर्ट भी अदालत में पेश की गई, जिसे रिकॉर्ड पर लिया गया.
मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि पर्यावरण की रक्षा बहुत जरूरी है, लेकिन इसके नाम पर लाखों लोगों की नौकरी या रोजगार छीनना सही नहीं होगा. दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण से निपटने की नेतृत्वकारी जिम्मेदारी अब केंद्र सरकार को निभानी होगी.


