'मन पर विजय ही सबसे बड़ी जीत...' भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों में छिपा है जीवन का पूरा सार, जानिए गीता का वो अनमोल रहस्य
मन को जीतना ही जीवन की सबसे बड़ी जीत है. गीता में श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं ये मन कभी तुम्हारा सबसे प्यारा दोस्त बन जाता है. तो कभी खतरनाक दुश्मन. बस संयम का डंडा, संतोष का चश्मा और इच्छाओं की लगाम कस लो फिर देखो, दिल में कितनी गजब की शांति और आत्मा में कितना मीठा सुकून छा जाता है.

नई दिल्ली: भगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहरा उपदेश दिया है. श्रीकृष्ण ने कहा कि मनुष्य का मन ही उसका सबसे बड़ा मित्र है और सबसे बड़ा शत्रु भी है. जब मन वश में होता है, तो जीवन में स्थिरता और संतुलन आता है, लेकिन जब मन चंचल और अशांत हो जाता है, तो व्यक्ति भ्रम और असमंजस में पड़ जाता है. यही कारण है कि गीता में मन के नियंत्रण को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है.
मन का नियंत्रण और आत्मा की अधीनता
गीता के छठे अध्याय के श्लोक 5 और 6 में श्रीकृष्ण कहते हैं, मनुष्य को अपने ही मन के द्वारा ऊपर उठना चाहिए, क्योंकि मन ही उसका मित्र है और मन ही शत्रु है. उन्होंने यह भी कहा कि जहां भी मन भटक जाए, वहीं से उसे आत्मा के अधीन कर लेना चाहिए. इस प्रक्रिया को प्राप्त करने के लिए सतत अभ्यास और वैराग्य आवश्यक है, जो मन की शांति का वास्तविक साधन है. जब मन नियंत्रित होता है, तो व्यक्ति अपनी शक्ति बाहर की परिस्थितियों से नहीं, बल्कि अपने भीतर से प्राप्त करता है.
इच्छाओं से अप्रभावित रहकर शांति प्राप्त करें
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दूसरे अध्याय के श्लोक 70 में कहा कि जैसे समुद्र में अनेक नदियां गिरती हैं, फिर भी वह स्थिर रहता है, वैसे ही जो व्यक्ति इच्छाओं से अप्रभावित रहता है, वही शांति को प्राप्त करता है. इस उपदेश से हमें यह सीखने को मिलता है कि बाहरी दुनिया निरंतर परिवर्तनशील है, लेकिन जो व्यक्ति अपनी भीतर की स्थिरता बनाए रखता है, वह जीवन के उतार-चढ़ाव के बावजूद शांत और संतुलित रहता है.
संतोष और आत्म-नियंत्रण की अहमियत
गीता में संतोष और आत्म-नियंत्रण पर भी विशेष बल दिया गया है. श्रीकृष्ण ने छठे अध्याय के श्लोक 7 में कहा कि, जिसका मन संतुष्ट है, जो अपने विचारों पर नियंत्रण रखता है, वह सुख-दुःख, गर्मी-सर्दी जैसी स्थितियों में समान रहता है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति सच्चे अर्थों में योगी कहलाता है. गीता के दूसरे अध्याय के श्लोक 38 में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय सभी में समान भाव से कर्म करो. यह संतुलन ही जीवन की सच्ची स्थिरता है.
आध्यात्मिक शांति का आधार
भगवदगीता का सार यही है कि असली शांति और आनंद बाहरी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि भीतर की स्थिरता से प्राप्त होते हैं. जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं, क्रोध और विचारों पर विजय पा लेता है, तब वह जीवन के सबसे बड़े युद्ध को जीतता है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यह स्पष्ट किया कि सच्ची शांति और आनंद मन के नियंत्रण, इच्छाओं के त्याग और संतुलित दृष्टि से ही प्राप्त होते हैं.
Disclaimer: ये धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.


