score Card

आराम की आदत इंसान को बना रही... प्रेमानंद महाराज ने बताया गर्म पानी से नहाना चाहिए या नहीं?

प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि गर्म पानी से नहाना बुरा तो नहीं, लेकिन ये शरीर को आलसी और कमजोर बना देता है. ठीक वैसे ही, जिंदगी में ज्यादा सुख-सुविधाओं के पीछे भागने से इंसान अंदर से खोखला और कमजोर पड़ जाता है.

Goldi Rai
Edited By: Goldi Rai

नई दिल्ली: आज के समय में इंसान हर कार्य में सुविधा और आराम तलाशने का आदी हो गया है. जीवन के हर क्षेत्र में सुख-सुविधाओं की बढ़ती चाह ने लोगों को भले ही सहज जीवन दिया हो, लेकिन इसी ने इंसान की सहनशक्ति, अनुशासन और आत्मबल को धीरे-धीरे कमजोर कर दिया है. पहले के लोग सादा जीवन जीते थे, साधारण भोजन करते थे तो उनका शरीर बलवान और मन दृढ़ रहता था.

बड़े-बुजुर्गों का मानना है कि जो व्यक्ति हर समय आराम की खोज में रहता है, वह अंततः भीतर से कमजोर पड़ जाता है. इसी संदर्भ में एक भक्त ने जब प्रेमानंद महाराज से पूछा कि क्या पानी से नहाना चाहिए या नही, तो महाराज जी ने इसका उत्तर दिया, जो आज के युग के लिए एक गहरी सीख बन गया.

गर्म पानी से नहाने से शरीर कमजोर होता है 

भक्त के सवाल का उत्तर देते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा कि अगर आप गर्म जल से स्नान करेंगे तो आप बहुत कमजोर हो जाएंगे. उन्होंने समझाया कि सुख-सुविधाओं की आदत इंसान की सहनशक्ति और आंतरिक शक्ति को नष्ट कर देती है. गर्म पानी शरीर को तात्कालिक आराम तो देता है, लेकिन यह धीरे-धीरे शरीर की प्राकृतिक ऊर्जा को कमजोर कर देता है. जब इंसान प्रकृति की ठंडक से डरने लगता है, तब उसका शरीर और मन दोनों नाजुक बन जाते हैं.

प्रकृति से सामंजस्य बनाना है जीवन का आधार

प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा कि मनुष्य को प्रकृति के साथ तालमेल बैठाना चाहिए, उससे बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
उनके अनुसार 'जब व्यक्ति ठंडे जल से स्नान करता है, तो शरीर प्रकृति की ठंडक का सामना करना सीखता है. इससे रक्त संचार बढ़ता है, मानसिक दृढ़ता आती है और व्यक्ति में प्राकृतिक ऊर्जा का संचार होता है. यह शक्ति केवल शारीरिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी मनुष्य को मजबूत बनाती है.

ब्रह्मचर्य और आत्मबल का संबंध

प्रेमानंद महाराज ने साफ शब्दों में कहा कि ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल यौन संयम नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा को सही दिशा में लगाने की साधना है. जब शरीर दृढ़ और मन संयमित होता है, तब व्यक्ति सही कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर पाता है. ठंडे जल से स्नान का अर्थ यहां केवल शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि एक तपस्या है, जो शरीर और मन दोनों को शुद्ध करती है और मनुष्य को भीतर से शक्तिशाली बनाती है.

सादगी और अनुशासन ही सच्चा बल

अंत में महाराज जी ने कहा कि जो व्यक्ति सादगी और अनुशासन के साथ जीवन जीता है, आराम से अधिक सहनशक्ति को महत्व देता है, वही वास्तव में ब्रह्मचर्य के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है. उन्होंने कहा कि ठंडे जल से स्नान सिर्फ शरीर को नहीं, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है और यही साधना मनुष्य को भीतर से दृढ़ बनाती है.

calender
31 October 2025, 07:37 AM IST

जरूरी खबरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो

close alt tag