कब मनाई जाएगी देव दीपावली, शिववास योग में बन रहा दुर्लभ संयोग...जानें क्या है पूजा विधि
देव दीपावली हिंदू धर्म का पावन पर्व है, जो दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा पर मनाया जाता है. 2025 में यह 5 नवंबर को मनाई जाएगी. वाराणसी में गंगा घाट दीपों से जगमगाते हैं. इस दिन स्नान, दान, दीपदान और भगवान शिव-विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है.

हिंदू धर्म में देव दीपावाली का पर्व अत्यंत पावन और भव्य माना जाता है. इसे देव दिवाली के नाम से भी जाना जाता है और यह दिवाली के ठीक 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है. इस वर्ष देव दीपावली 5 नवंबर 2025 (बुधवार) को मनाई जाएगी.
वाराणसी में विशेष उत्सव का आयोजन
देव दीपावली का सबसे भव्य उत्सव वाराणसी यानी काशी में मनाया जाता है. इस दिन गंगा के घाटों पर हजारों दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं, जिससे पूरा शहर दिव्य प्रकाश से जगमगा उठता है. कथाओं के अनुसार, इसी दिन देवताओं ने पृथ्वी पर आकर भगवान शिव की आराधना की थी और असुरों पर विजय की खुशी में दीप जलाए थे. इसी कारण इसे देवताओं की दीपावली कहा जाता है.
इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान, दान और दीपदान जैसे शुभ कार्य करते हैं. संध्या के समय गंगा आरती का आयोजन भव्य रूप में होता है, जिसमें हजारों भक्त और पर्यटक शामिल होते हैं.
देव दीपावली 2025 शुभ मुहूर्त
- द्रिक पंचांग के अनुसार, देव दीपावली की पूर्णिमा तिथि
- शुरुआत: 4 नवंबर 2025, रात 10:36 बजे
- समापन: 5 नवंबर 2025, शाम 6:48 बजे
- संध्या काल की गंगा आरती और दीपदान का शुभ मुहूर्त
- समय: शाम 5:15 बजे से 7:50 बजे तक
- अवधि: 2 घंटे 37 मिनट
यह वही समय है जब गंगा तट पर दीपदान और पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.
- भद्रा और शुभ योग का संयोग
- इस वर्ष देव दीपावली के दिन भद्रा काल भी रहेगा.
- भद्रा का समय: सुबह 8:44 बजे तक
यह अवधि स्वर्ग लोक में रहेगी, इसलिए इसका पृथ्वी पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसके अलावा इस दिन शिववास योग भी बन रहा है, जिसकी शुरुआत शाम 6:48 बजे से होगी. यह योग भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है.
देव दीपावली की पूजन विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नानादि करें.
- अपने घर के पूजा स्थल या आंगन में घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं.
भगवान शिव और विष्णु का पूजन करें- फूल, बेलपत्र, जल, फल, मिष्ठान आदि अर्पित करें. संध्या समय घर के प्रत्येक कोने और आंगन में दीप प्रज्वलित करें. शिव चालीसा, विष्णु सहस्रनाम या गंगा स्तोत्र का पाठ करें. अंत में आरती करें और दीपदान अवश्य करें.
आध्यात्मिक महत्व
देव दीपावली का पर्व केवल पूजा का नहीं, बल्कि पवित्रता, कृतज्ञता और आत्मप्रकाश का प्रतीक है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन दीप जलाने से पितृ दोष, ग्रह बाधा और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. वाराणसी में इस अवसर पर 84 घाटों पर लाखों दीपों का महासागर जब जलता है, तो दृश्य मानो स्वर्ग से उतर आया प्रतीत होता है.
देव दीपावली का यह उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह संदेश भी देता है. 'अंधकार चाहे जितना भी गहरा हो, एक दीपक उसे दूर कर सकता है.'


