चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन, पढ़ें कुछ चुनिंदा शेर


2024/04/27 14:07:36 IST

ज़ुल्फ़

    चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन, क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन

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ज़ख़्म

    भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा, मैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा

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शहजादी

    शहजादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तक, कितनी मेहराबें पड़ती हैं कितने दर आते हैं

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कशिश

    मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत', लोग कुछ भी कहते हों ख़ुद-कुशी के बारे में  

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गहरा

    मिट्टी पे नुमूदार हैं पानी के ज़ख़ीरे, इन में कोई औरत से ज़ियादा नहीं गहरा

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रूह की प्यास

    बुझी रूह की प्यास लेकिन सखी, मिरे साथ मेरा बदन भी तो है

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ख़ुद

    क्या हो जाता है इन हँसते जीते जागते लोगों को, बैठे बैठे क्यूँ ये ख़ुद से बातें करने लगते हैं

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