हक़ीक़त खुल गई हसरत तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की... पढ़िये हसरत मोहानी के चुनिंदा शेर
ज़ुल्म ओ सितम
उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ,
कश्ती मिरी डुबोई है साहिल के आस-पास.
Credit: Social Mediaइश्क़ भी ख़ुद-ग़रज़
मिरा इश्क़ भी ख़ुद-ग़रज़ हो चला है,
तिरे हुस्न को बेवफ़ा कहते कहते.
Credit: Social Mediaतर्क-ए-मोहब्बत
हक़ीक़त खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की,
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैं.
Credit: Social Mediaतसल्ली पर शायरी
मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल,
फिर तू ने याद आ के ब-दस्तूर कर दिया.
Credit: Social Mediaमसीहाई का दा'वा
मुझ को देखो मिरे मरने की तमन्ना देखो,
फिर भी है तुम को मसीहाई का दा'वा देखो.
Credit: Social Mediaइब्तिदा-ए-शौक़
है इंतिहा-ए-यास भी इक इब्तिदा-ए-शौक़,
फिर आ गए वहीं पे चले थे जहाँ से हम.
Credit: Social Mediaगोया ख़फ़ा नहीं
मिलते हैं इस अदा से कि गोया ख़फ़ा नहीं,
क्या आप की निगाह से हम आश्ना नहीं.
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