Kaanta Shayari: गुलों के साये में अक्सर रियाज तड़पा हूँ, करार कांटों पे कुछ ऐसा पा लिया मैंने...


2023/12/27 20:45:57 IST

अज्ञात

    आराम क्या कि जिस से हो तकलीफ़ और को.. फेंको कभी न पाँव से काँटा निकाल के..!!

असअ'द बदायुनी

    फूलों की ताज़गी ही नहीं देखने की चीज़.. काँटों की सम्त भी तो निगाहें उठा के देख..!!

जावेद वशिष्ट

    काँटों पे चले हैं तो कहीं फूल खिले हैं.. फूलों से मिले हैं तो बड़ी चोट लगी है..!!

असलम कोलसरी

    काँटे से भी निचोड़ ली ग़ैरों ने बू-ए-गुल.. यारों ने बू-ए-गुल से भी काँटा बना दिया..!!

अज्ञात

    नहीं काँटे भी क्या उजड़े चमन में.. कोई रोके मुझे मैं जा रहा हूँ..!!

जिगर मुरादाबादी

    गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़.. काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं..!!

'जिगर' मुरादाबादी

    कांटे किसी के हक में, किसी को गुलो-समर.. क्या खूब एहतिमामे-गुलिस्ताँ है आजकल..!!

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