ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप...पढ़ें कैफ़ी आजमी के शेर..


2024/05/03 22:28:59 IST

दीवाना-वार चाँद से

    दीवाना-वार चाँद से आगे निकल गए, ठहरा न दिल कहीं भी तिरी अंजुमन के बाद

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जिन ज़ख़्मों को वक़्त

    जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है, तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो

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जो वो मिरे न रहे

    जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा, बिछड़ के उनसे सलीक़ा न ज़िन्दगी का रहा

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सदियाँ गुज़र गईं

    पाया भी उनको खो भी दिया चुप भी हो रहे, इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं

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जो इक ख़ुदा नहीं मिलत

    जो इक ख़ुदा नहीं मिलत तो इतना मातम क्यों, मुझे ख़ुद अपने क़दम का निशाँ नहीं मिलता

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आज फिर टूटेंगी

    आज फिर टूटेंगी तेरे घर नाज़ुक खिड़कियाँ, आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में

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जिस तरह हँस रहा हूँ

    जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क, यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े

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