ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप...पढ़ें कैफ़ी आजमी के शेर..
दीवाना-वार चाँद से
दीवाना-वार चाँद से आगे निकल गए, ठहरा न दिल कहीं भी तिरी अंजुमन के बाद
Credit: Googleजिन ज़ख़्मों को वक़्त
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है, तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो
Credit: Googleजो वो मिरे न रहे
जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा, बिछड़ के उनसे सलीक़ा न ज़िन्दगी का रहा
Credit: Googleसदियाँ गुज़र गईं
पाया भी उनको खो भी दिया चुप भी हो रहे, इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं
Credit: Googleजो इक ख़ुदा नहीं मिलत
जो इक ख़ुदा नहीं मिलत तो इतना मातम क्यों, मुझे ख़ुद अपने क़दम का निशाँ नहीं मिलता
Credit: Googleआज फिर टूटेंगी
आज फिर टूटेंगी तेरे घर नाज़ुक खिड़कियाँ, आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में
Credit: Googleजिस तरह हँस रहा हूँ
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क, यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े
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