मोहब्बत को छुपाए लाख कोई छुप नहीं सकती...इश्क पर लिखे गए बेहतरीन शेर
नज़ीर अकबराबादी
हम हाल तो कह सकते हैं अपना पर कहें क्या,
जब वो इधर आते हैं तो तन्हा नहीं आते
ज़ुबैर रिज़वी
औरतों की आँखों पर काले काले चश्मे थे सब की सब बरहना थीं,
ज़ाहिदों ने जब देखा साहिलों का ये मंज़र लिख दिया गुनाहों में
वासिफ़ बनारसी
सज़ा देते हैं 'वासिफ़' सब को वो जुर्म-ए-मोहब्बत पर,
नहीं मेरे लिए कोई सज़ा ये है सज़ा मेरी
ख़ुर्शीद रिज़वी
मिरे इस अव्वलीं अश्क-ए-मोहब्बत पर नज़र कर,
ये मोती सीप में फिर उम्र-भर आता नहीं है
शमीम जयपुरी
तर्क-ए-मोहब्बत पर भी होगी उन को नदामत हम से ज़ियादा,
किस ने की है कौन करेगा उन से मोहब्बत हम से ज़ियादा
लाला माधव राम जौहर
मोहब्बत को छुपाए लाख कोई छुप नहीं सकती,
ये वो अफ़्साना है जो बे-कहे मशहूर होता है
मंज़र लखनवी
कम-सिनी क्या कम थी इस पर क़हर है शक्की मिज़ाज,
अपना नावक मेरे दिल से खींच कर देखा किए
मिर्ज़ा ग़ालिब
'ग़ालिब' न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़,
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर
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