पेश हैं मुनव्वर राना की आखिरी मुशायरा
मुनव्वर राना
मैं अपनी लड़खड़ाहट से परेशाँ हूँ मगर पोती,
मिरी उँगली पकड़ कर दूर तक जाने को कहती है
Credit: Social Mediaफ़ुट-पाथ
सो जाते हैं फ़ुट-पाथ पे अख़बार बिछा कर,
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
Credit: Social Mediaदिन-रात
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में,
ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है
Credit: Social Mediaकश्ती
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़ाब आ जाती है
Credit: Social Mediaमाँ
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
Credit: Social Mediaग़ज़ल
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है,
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
Credit: Social Mediaदुनिया
मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं
Credit: Social Media View More Web Stories