Urdu Shayari:यूँ न क़ातिल को जब यक़ीं आया, हम ने दिल खोल कर दिखाई चोट


2024/03/16 14:33:08 IST

मिर्ज़ा ग़ालिब

    की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा, हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना

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साहिर लुधियानवी

    ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है, ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा

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मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ

    ख़ुदा के वास्ते इस को न टोको, यही इक शहर में क़ातिल रहा है

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इरफ़ान सिद्दीक़ी

    मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ, तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ

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इक़बाल अज़ीम

    क़ातिल ने किस सफ़ाई से धोई है आस्तीं, उस को ख़बर नहीं कि लहू बोलता भी है

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हकीम मंज़ूर

    शहर के आईन में ये मद भी लिक्खी जाएगी, ज़िंदा रहना है तो क़ातिल की सिफ़ारिश चाहिए

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फ़ानी बदायुनी

    यूँ न क़ातिल को जब यक़ीं आया, हम ने दिल खोल कर दिखाई चोट

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अमीर क़ज़लबाश

    क़त्ल हो तो मेरा सा मौत हो तो मेरी सी, मेरे सोगवारों में आज मेरा क़ातिल है

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