पढ़ें इशक पर लिखें मिर्जा गालिब के शेर....


2024/05/06 21:00:11 IST

निकलना ख़ुल्द से आदम

    निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन, बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले

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यस्सर नहीं इंसाँ होना

    बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना

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बुलबुल के कारोबार

    बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल, कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का

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फिर उसी बेवफ़ा

    फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं, फिर वही ज़िंदगी हमारी है

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मैं ने चाहा था

    मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ, वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ

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मेहरबाँ हो के

    मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त, मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ

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ख़त लिखेंगे

    ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो, हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के

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