पढ़ें इशक पर लिखें मिर्जा गालिब के शेर....
निकलना ख़ुल्द से आदम
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन, बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
Credit: Googleयस्सर नहीं इंसाँ होना
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना
Credit: Googleबुलबुल के कारोबार
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल, कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का
Credit: Googleफिर उसी बेवफ़ा
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं, फिर वही ज़िंदगी हमारी है
Credit: Googleमैं ने चाहा था
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ, वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ
Credit: Googleमेहरबाँ हो के
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त, मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ
Credit: Googleख़त लिखेंगे
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो, हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
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