एहसान-ए-रब मोहब्बतें इतनी मिलीं अदील, पढ़ें एहसान पर शेर


2024/01/31 15:28:56 IST

जलील मानिकपूरी

    सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है, चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी

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हफ़ीज़ जालंधरी

    हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा, एहसाँ ये कीजिए कि ये एहसाँ न कीजिए

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अकबर इलाहाबादी

    ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन, सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर

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जलाल लखनवी

    जिस ने कुछ एहसाँ किया इक बोझ सर पर रख दिया, सर से तिनका क्या उतारा सर पे छप्पर रख दिया

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ज़हीर देहलवी

    सर पे एहसान रहा बे-सर-ओ-सामानी का, ख़ार-ए-सहरा से न उलझा कभी दामन अपना

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हिमायत अली शाएर

    इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और, जब आग हो नम-ख़ुर्दा तो उठता है धुआँ और

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अमीता परसुराम मीता

    मिले क़तरा क़तरा ये क्या ज़िंदगी है, ऐ दरिया-ए-रहमत वही तिश्नगी है

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