कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई, पढ़ें मौत पर शायरी
फ़िराक़ गोरखपुरी
मौत का भी इलाज हो शायद, ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
साक़िब लखनवी
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था, हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते
अहमद नदीम क़ासमी
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा, मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा
फ़िराक़ गोरखपुरी
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं, ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका
मिर्ज़ा ग़ालिब
मरते हैं आरज़ू में मरने की, मौत आती है पर नहीं आती
ख़ालिद शरीफ़
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई, इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
नज़ीर सिद्दीक़ी
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं, ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से
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