बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था, पढ़े बेहतरीन फ़िल्मी शेर


2024/02/07 14:16:59 IST

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

    ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है

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अमीर मीनाई

    हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे, ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे

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जाफ़र अली हसरत

    तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत हम अपने ग़म से कम ख़ाली, चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली

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मिर्ज़ा ग़ालिब

    की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा, हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना

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इमाम बख़्श नासिख़

    सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है, कि तारीकी में साया भी जुदा रहता है इंसाँ से

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शकील बदायूनी

    जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील', मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

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इमाम बख़्श नासिख़

    सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है, कि तारीकी में साया भी जुदा रहता है इंसाँ से

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