बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था, पढ़े बेहतरीन फ़िल्मी शेर
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
Credit: freepikअमीर मीनाई
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे, ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
Credit: freepikजाफ़र अली हसरत
तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत हम अपने ग़म से कम ख़ाली, चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली
Credit: freepikमिर्ज़ा ग़ालिब
की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा, हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना
Credit: freepikइमाम बख़्श नासिख़
सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है, कि तारीकी में साया भी जुदा रहता है इंसाँ से
Credit: freepikशकील बदायूनी
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील', मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
Credit: freepikइमाम बख़्श नासिख़
सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है, कि तारीकी में साया भी जुदा रहता है इंसाँ से
Credit: freepik View More Web Stories