वहाँ मक़ाम तो रोने का था मगर ऐ दोस्त...पढ़ें ज़फ़र इकबाल के शेर....


2024/04/02 21:57:47 IST

मिरा ज़ाहिर होना

    मैं किसी और ज़माने के लिए हूँ शायद, इस ज़माने में है मुश्किल मिरा ज़ाहिर होना

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पिछले बरस की कुदूरतें

    चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें, दीवार से पुराना कैलन्डर उतार दे

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ख़ूब अच्छा हो रहा है

    ख़राबी हो रही है तो फ़क़त मुझ में ही सारी, मिरे चारों तरफ़ तो ख़ूब अच्छा हो रहा है

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मुझ में हैं गहरी उदासी

    मुझ में हैं गहरी उदासी के जरासीम इस क़दर, मैं तुझे भी इस मरज़ में मुब्तला कर जाऊँगा

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उस के नाम की नींद

    भरी रहे अभी आँखों में उस के नाम की नींद, वो ख़्वाब है तो यूँही देखने से गुज़रेगा

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दूल्हा हुआ मैं

    मौत के साथ हुई है मिरी शादी सो 'ज़फ़र', उम्र के आख़िरी लम्हात में दूल्हा हुआ मैं

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सूरत देख ली हम ने

    वो सूरत देख ली हम ने तो फिर कुछ भी न देखा, अभी वर्ना पड़ी थी एक दुनिया देखने को

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