Urdu Shayari: चाहता हूँ फूँक दूँ इस शहर को,शहर में इन का भी घर है क्या करूँ
चाँद
थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे,तू आ के जान रात के मंज़र में डाल दे
Credit: social mediaउलझनें
उन से मिल कर और भी कुछ बढ़ गईं,उलझनें फ़िक्रें क़यास-आराइयाँ
Credit: social mediaज़िंदा
मत देख कि फिरता हूँ तिरे हिज्र में ज़िंदा,ये पूछ कि जीने में मज़ा है कि नहीं है
Credit: social mediaजानिब
चार जानिब देख कर सच बोलिए,आदमी फिरते हैं सरकारी बहुत
Credit: social mediaशहर
चाहता हूँ फूँक दूँ इस शहर को,शहर में इन का भी घर है क्या करूँ
Credit: social mediaबारिश
दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई,फिर ये बारिश मिरी तंहाई चुराने आई
Credit: social mediaदहलीज़
जिस दिन मिरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके,उस दिन ख़ुदा शिगाफ़ मिरे सर में डाल दे
Credit: social mediaमंज़ूर
कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर,और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया
Credit: social media View More Web Stories