Urdu Shayari: चाहता हूँ फूँक दूँ इस शहर को,शहर में इन का भी घर है क्या करूँ


2024/05/08 13:48:08 IST

चाँद

    थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे,तू आ के जान रात के मंज़र में डाल दे

Credit: social media

उलझनें

    उन से मिल कर और भी कुछ बढ़ गईं,उलझनें फ़िक्रें क़यास-आराइयाँ

Credit: social media

ज़िंदा

    मत देख कि फिरता हूँ तिरे हिज्र में ज़िंदा,ये पूछ कि जीने में मज़ा है कि नहीं है

Credit: social media

जानिब

    चार जानिब देख कर सच बोलिए,आदमी फिरते हैं सरकारी बहुत

Credit: social media

शहर

    चाहता हूँ फूँक दूँ इस शहर को,शहर में इन का भी घर है क्या करूँ

Credit: social media

बारिश

    दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई,फिर ये बारिश मिरी तंहाई चुराने आई

Credit: social media

दहलीज़

    जिस दिन मिरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके,उस दिन ख़ुदा शिगाफ़ मिरे सर में डाल दे

Credit: social media

मंज़ूर

    कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर,और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया

Credit: social media

View More Web Stories