याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा...पढ़ें जावेद अख्तर के शेर...
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है, किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
Credit: Googleग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना, बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
Credit: Googleधुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है, न पूरे शहर पर छाए तो कहना
Credit: Googleइसी जगह इसी दिन तो
इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान, अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
Credit: Googleमैं भूल जाऊँ तुम्हें
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है, मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
Credit: Googleइस शहर में जीने के
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं, होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
Credit: Googleऊँची इमारतों से मकाँ
ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया, कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
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