याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा...पढ़ें जावेद अख्तर के शेर...


2024/05/01 20:58:34 IST

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद

    मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है, किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

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ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना

    ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना, बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता

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धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है

    धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है, न पूरे शहर पर छाए तो कहना

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इसी जगह इसी दिन तो

    इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान, अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान

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मैं भूल जाऊँ तुम्हें

    मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है, मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ

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इस शहर में जीने के

    इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं, होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं

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ऊँची इमारतों से मकाँ

    ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया, कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए

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