Zulf Shayari: बिखरी हुई वो ज़ुल्फ़ इशारों में कह गई, मैं भी शरीक हूँ तिरे हाल-ए-तबाह में...
मुनव्वर राना
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे..
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था..!!
मिर्ज़ा ग़ालिब
नींद उसकी है, दिमाग़ उसका है, रातें उसकी हैं..
तेरी ज़ुल्फ़ें जिसके बाज़ू पर परेशाँ हो गईं..!!
आसी ग़ाज़ीपुरी
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई..
फिर फँसा ज़ुल्फ़ों में दिल फिर वही आफ़त आई..!!
रज़ा अज़ीमाबादी
देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब में..
फिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा..!!
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को..
तुम ने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रक्खा है..!!
अब्दुल हमीद अदम
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से..
सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी..!!
बशीर बद्र
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम..
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा..!!
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