ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा...पढ़ें परवीन शाकिर के शेर...


2024/04/30 23:44:17 IST

यूँ देखना उस को

    यूँ देखना उस को कि कोई और न देखे, इनआम तो अच्छा था मगर शर्त कड़ी थी

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हथेलियों की दुआ

    हथेलियों की दुआ फूल बन के आई हो, कभी तो रंग मिरे हाथ का हिनाई हो

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तेरे तोहफ़े तो सब

    तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार, अब के मेरे लिए ख़ुशबू-ए-हिना आई हो

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उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत

    उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई, जी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था

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पास जब तक वो रहे

    पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है, फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह

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हाथ मेरे भूल बैठे

    हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न, बंद मुझ पर जब से उस के घर का दरवाज़ा हुआ

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रुख़्सत करने के

    रुख़्सत करने के आदाब निभाने ही थे, बंद आँखों से उस को जाता देख लिया है

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