तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूं...पढ़ें कुछ चुनिंदा शेर
बोझ
तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ, आँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख
Credit: Social Mediaतोहफ़ा
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे, तितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर
Credit: Social Mediaज़ख़्म
लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को, ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा
Credit: Social Mediaरूह
सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूह, देखो तो इक शिकन भी नहीं है लिबास में
Credit: Social Mediaहमारा
बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका, हम जिस पे मर मिटे वो हमारा न हो सका
साया-ए-दीवार
मुझे गिरना है तो मैं अपने ही क़दमों में गिरूँ, जिस तरह साया-ए-दीवार पे दीवार गिरे
Credit: Social Mediaज़ख़्म
जाती है धूप उजले परों को समेट के, ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं बिस्तर पे लेट के
Credit: Social Media View More Web Stories