तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूं...पढ़ें कुछ चुनिंदा शेर


2024/06/09 18:26:01 IST

बोझ

    तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ, आँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख

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तोहफ़ा

    आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे, तितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर

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ज़ख़्म

    लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को, ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा

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रूह

    सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूह, देखो तो इक शिकन भी नहीं है लिबास में

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हमारा

    बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका, हम जिस पे मर मिटे वो हमारा न हो सका

साया-ए-दीवार

    मुझे गिरना है तो मैं अपने ही क़दमों में गिरूँ, जिस तरह साया-ए-दीवार पे दीवार गिरे

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ज़ख़्म

    जाती है धूप उजले परों को समेट के, ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं बिस्तर पे लेट के

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