जहां सजती थी गीत-संगीत की महफिल...तवायफें देती थीं तहजीब की शिक्षा, फिर कैसे वो जगह बन गई जिस्मफरोशी का अड्डा

वो जगह जहां गीत-संगीत की महफिले सजती थी, जहां तवायफें अपनी कला दिखाती थीं. जहां नवाब और रईसजादें अपने बच्चे को तहजीब सिखाने के लिए भेजते थे वो जगह कैसे जिस्मफरोशी के अड्डे में बदल गया चलिए इस बारे में विस्तार से जानते हैं.

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जब हमारे देश (भारत) पर ब्रिटिश शासन की हुकूमत थी तब नवाबों के दौर में तवायफों को समाज में इज्जत और मान सम्मान दिया जाता था. उनकी समाज में एक अलग पहचान थी. इतिहास में कई ऐसी तवायफें हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. हालांकि, दुर्भाग्य की बात है कि, आज के दौर में तवायफ को एक गलत नजरिये से देखा जाता है.

आजकल तवायफों को बदचलनी से जोड़ा जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ज़्यादातर लोग तवायफ और ज़िस्मफरोशी वाली औरतों के बीच का फर्क नहीं जानते हैं. आज हम आपको इन्ही तवायफ के कोठे के बारे में बताने जा रहे हैं जो बाद में जिस्मफरोशी का अड्डा बना गया तो चलिए जानते हैं.

'तवायफों के बारे में जानिए

'तवायफ', यह नाम एक ऐसा नाम है जिसे सुनते ही लोग कई मतलब निकाल लेते हैं. इस नाम को लोग बदचलनी सो जोड़ते हैं जबकि पहले ऐसा नहीं थी. दरअसल, जब भारत में नवाबों का दौर था तब तवायफ़ों को मान सम्मान दिया जाता था. वे अपने अदब और तहज़ीब के लिए जाने जाती थी. इन तवायफों का एक महल होता था जिसमें ये रहती थी और अपनी नृत्य कौशल, संगीत की कला को प्रस्तुत करती थी. तवायफों की कला को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे. इतना ही नहीं रईसजादें अपने बच्चों को कला, तहजीब सीखने के लिए तवायफों के पास ही भेजा करते थे, लेकिन जैसे-जैसे देश पर अंग्रेजो का कब्जा होता गया तवायफें के महफिल जिस्मफरोशी के अड्डे में तब्दील होती गई.

कभी तहजीब का स्कूल हुआ करता था तवायफों का अड्डा

देश आजाद होने से पहले तवायफों का खूब चलन था. तब तवायफें तहजीब और कला के लिए जानी जाती थी. यहां लड़कियों को 5 साल की उम्र से ही नृत्य-संगीत की शिक्षा दी जाती थी. वहीं जब वह 10-12 साल की हो जाती थी तो  ये लड़कियां प्रशिक्षित समूहों का हिस्सा हो जातीं. युवा होने पर इन्हें किसी के संरक्षण यानी पुरुष की देखभाल में दे दिया जाता. ये तवायफें बेहद खूबसूरत होती थी जो अपने घरों को बालाखाना या कोठा कहती. इन कोठों पर क्रांतिकारियों की मीटिंग (सभा) हुआ करती थी क्यों अंग्रेज कभी भी कोठे की तलाशी नहीं करते थे. अंग्रेजो के खिलाफ बगावत कर रहे भारतीयों को तवायफे हर तरह की मदद करती थी. वे अंग्रेज पर नज़र भी रखतीं और उनसे ब्रिटिश शासन की ख़बरें भी निकलवा लेती थी.

आजादी के आंदोलन में तवायफों की भूमिका

देश की आजादी की लड़ाई में इन तवायफों ने अहम योगदान दिया है. तवायफों ने अपने कोठे से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग लड़ने में आंदोलनकारियों की मदद करती थी. हालांकि, एक के बाद एक विद्रोहियों की धड़-पकड़ जाने के बाद ब्रिटिशों हुकुमत की गाज इन तवायफों पर भी गिरी. तब  उनकी गिनती समाज के अमीर तबके में होती थी. इनके पास अथाह यानी बेशुमार धन-दौलत थी लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों तवायफ़ों को लोग वेश्याएं समझने लगे और जहां गीत संगीत से महफिल सजता वो जगह वेश्याओं का अड्डा कैसे बन गया? चलिए आगे जानते हैं.

तवायफों की महफिल कैसे बना जिस्मफरोशी का अड्डा

दरअसल, जब अंग्रेजों को पता चला कि ये तवायफें आंदोलकाारियों के मदद कर रहें तब उन्होंने इनके साथ दुर्व्यहार करना शुरू कर दिया. अंग्रेजों ने इन तवायफों को नाचने वाली औरत का दर्जा दे दिया. अंग्रेजों ने इन तवायफों को जिस्म का धंधा करने पर मजबूर कर दिया. अंग्रेज इन तवायफों के साथ जबरदस्ती दुष्कर्म करने लगे और उनके साथ रखैल जैसा व्यवहार करने लगे. अंग्रेजों ने तवायफों के अड्डे को रेड लाइट एरिया में बदल दिया. समय के साथ तवायफों की स्थिति खराब हो गई और वेश्याओं के बराबर हो गई. यहीं वजह है कि आज के दौर में लोग तवायफों की तूलना वेश्याओं से करते हैं. 

First Updated : Friday, 10 May 2024