सपा सांसद ST हसन का विवादित बयान, कहा- मुसलमान केवल शरीयत कानून का पालन करेंगे

असम में मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 के रद्द होने पर सपा से सांसद टीएस हसन ने इस पर प्रतिक्रिया दी है. कहा कि मुसलमान केवल शरीयत कानून को मानेंगे.

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Controversial statement of SP MP ST Hasan : असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने प्रदेश में लंबे से समय से चले आ रहे असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को रद्द कर दिया. यह फैसला शुक्रवार रात मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया. इस पर समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन की प्रतिक्रिया आई है. 

सपा सांसद एसटी हसन ने कहा कि मुस्लिमों को टारगेट करने के लिए यह किया गया है. हसन ने कहा कि देश का मुसलमान केवल शरीयत काननू और कुरान का पालन करेंगे. बातों- बातों में एसटी हसन ने नए कानून को नहीं मानने के लिए कहा है. हसन ने कहा कि मुस्लिम मैरिज एक्ट को खत्म कर दिया गया और हिंदू मैरिज एक्ट जैसा का तैसा है. आदिवासियों के लिए क्या किया है. सिखों के लिए क्या किया है? मुसलमान इस बात को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे.

हसन के कहा कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं इसलिए सरकार ये स्टंट कर रही है.देश की बदकिश्मती ये है कि हमारे देश में सियासत रोजगार, मंहगाई और विकास पर नहीं बल्कि हिंदू मुसलमान को लेकर हो रही है. 

मंत्री ने कहा UCC की ओर बढ़े कदम

असम के कैबिनेट मंत्री जयंत मल्लबारुआ ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को रद्द करने पर कहा कि यह सरकार के द्वारा समान नागरिक संहिता (UCC) की दिशा में बढ़ाया गया बड़ा कदम बताया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आगे चलकर मुस्लिम विवाह और तलाक से संबंधित सभी मामले विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित होंगे.

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "जिला आयुक्त और जिला रजिस्ट्रार अब नई संरचना के तहत मुस्लिम विवाह और तलाक को पंजीकृत करने के प्रभारी होंगे. निरस्त अधिनियम के तहत कार्यरत 94 मुस्लिम रजिस्ट्रारों को भी उनके पदों से मुक्त कर दिया जाएगा और उन्हें 2 लाख रुपये का एकमुश्त भुगतान दिया जाएगा.

क्या कहता था विवाह कानून?

असम कैबिनेट ने ब्रिटिश जमाने से चले आ रहे कानून को रद करने की मंजूरी दे दी है. मुख्यमंत्री ने पोस्ट किया, 'इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल हैं, भले ही दूल्हा और दुल्हन क्रमशः 18 और 21 वर्ष की कानूनी उम्र तक नहीं पहुंचे हों, जैसा कि कानून द्वारा आवश्यक है. यह कदम असम में बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है.'

कानून मुस्लिम रजिस्ट्रारों को विवाह और तलाक की स्वैच्छिक घोषणा पंजीकृत करने का अधिकार देता था. इस कानून के निरस्त होने के बाद, जिला अधिकारी 94 मुस्लिम विवाह रजिस्ट्रारों द्वारा रखे गए पंजीकरण रिकॉर्ड को अपने कब्जे में ले लेंगे.

First Updated : Saturday, 24 February 2024