ॐ लोक आश्रम: पुनर्जन्म का सिद्धांत क्या है भाग-2

लोहा ही है जो अलग-अलग स्वरूप लेता है। इसी तरह जो परमात्मा है जगत का कारण है वही अलग-अलग स्वरूपों में अवस्थित होता है एक स्वरूप खत्म होता है फिर वापस अपने स्वरूप में आता है फिर दूसरा स्वरूप धारण करता है।

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लोहा ही है जो अलग-अलग स्वरूप लेता है। इसी तरह जो परमात्मा है जगत का कारण है वही अलग-अलग स्वरूपों में अवस्थित होता है एक स्वरूप खत्म होता है फिर वापस अपने स्वरूप में आता है फिर दूसरा स्वरूप धारण करता है। यही भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि न तो आत्मा किसी को मारता है और न यह मारा जाता है। यह अलग-अलग स्वरूप लेता है। एक शरीर छोड़ा दूसरा शरीर ग्रहण किया। फिर उस शरीर को छोड़ा और तीसरा शरीर ग्रहण किया। ये अनवरत प्रक्रिया है जो सतत जारी रहती है।

यही पुनर्जन्म का सिद्धांत है कि व्यक्ति जिस तरह का कर्म करता है उसी तरह के संस्कार आकर्षित होते हैं। स्वामी महावीर संस्कारों को पुद्गल का नाम देते हैं। जिस तरह चुंबक लोहे को आकर्षित करता है उसी तरह से हमारे कर्म कुछ संस्कार को उत्पन्न करते हैं वही है पुद्गल, वो हमारी आत्मा से चिपक जाती है और वो हमारे व्यवहार को हमारे व्यक्तित्व को, हमारे आसपास के माहौल को वो बनाते हैं और उन्हीं के अनुसार हम चलते रहते हैं। उन्हीं संस्कारों के अनुसार हम अगला जन्म लेते हैं। इसलिए कर्मों में सावधानी जरूरी है और ये समझ लेना जरूरी है कि सत्य क्या है और असत्य क्या है।

सही क्या है गलत क्या है। तभी हम सही आचरण कर पाएंगे तभी हम सही निर्णय कर पाएंगे। हम सही फैसला ले पाएंगे। कुरुक्षेत्र में अर्जुन जो कि दुविधा में खड़ा है वो युद्ध से भागने की सोच रहा है वो सोच रहा है कि इस युद्ध को करने से तो अच्छा है कि मैं भीख मांगकर जी लूं। मैं क्यों किसी को मारूं मैं क्यों किसी से मारा जाऊं। ऐसा युद्ध क्यों करना जिसमें हजारों-लाखों लोग मारे जाएं। इससे अच्छा है कि अन्याय और अपमान सहकर ही जी लूं। तो ये सोच इसलिए है कि वो संसार के सही स्वरूप को नहीं समझ रहा है वह अपने कर्तव्य से भाग रहा है। वह अपने कर्तव्य से विमुख हो रहा है। हमें अपना कर्तव्य करना है और संसार के सही स्वरूप को समझना है तभी हम सही निर्णय ले सकेंगे।

First Updated : Monday, 30 January 2023