पाकिस्तान का वो पीएम जिसने UN की मीटिंग में ही फाड़ दिया था उसका प्रस्ताव
Zulfikar Ali Bhutto: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो को पाकिस्तान की तारीख में कभी नहीं भुलाया जा सकता है. आज उनके डेथ एनिवर्सरी के मौके पर एक नजर उनके सफर पर.
Zulfikar Ali Bhutto: यूं तो पाकिस्तान के एक से बढ़कर एक प्रधानमंत्री मिले हैं लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो जैसा प्रधानमंत्री पाकिस्तान में अब तक नहीं आया. जुल्फिकार अली भुट्टो 1962 की भारत और चीन जंग के अलावा 1965 व 71 की भारत-पाकिस्तान जंगों के दौरान अहम पर पदों पर आसीन थे. वोव जुल्फिकार अली भुट्टो ही थे जिन्होंने पाकिस्तान के लिए 1965 की जंग के बाद परमाणु कार्यक्रम का ढांचा तैयार किया था.
भुट्टो पहले जनरल अय्यूब खान के शासनकाल में विदेश मंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारियां निभा रहे थे. हालांकि अय्यूब खान के साथ कुछ मतभेद होने की वजह से भुट्टो ने खुद को अलग कर लिया था और 1947 में अपनी नई पार्टी बना ली. भुट्टो ने अपनी पार्टी को इस्लामी समाजवादी का आइना बनाया और 1970 में होने वाले आम चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. भुट्टो 1971 से 1973 तक राष्ट्रपति और 1973 से 1977 तक पाकिस्तान के 9वें प्रधानमंत्री रहे हैं.
भुट्टो ने अपनी कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले लिए. 1973 में नए संविधान का ऐलान होने के अलावा पाकिस्तान को संसदीय लोकतंत्र की तरफ ले जाने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो ही हैं. जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिक्षा, हेल्थ और इंडस्ट्रीज के क्षेत्र में ऐसे सुधार किए हैं जिन्हें पाकिस्तान कभी नहीं भुला सकता. शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भुट्टो ने कई यूनिवर्सिटीज के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज की स्थापना की. भुट्टो ने संवैधानिक, आर्थिक नीति, विदेश नीति, बैंकिंग, औद्योगिक और विदेश नीति में काबिले तारीफ सुधार किए हैं.
जुल्फिकार अली भुट्टो उस वक्त सुर्खियों में आ गे थे जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उनका भाषण हुआ था. जिसमें उन्होंने पोलैंड के ज़रिए पेश किए गए युद्धविराम प्रस्ताव को फाड़ दिया था. उनका यह वीडियो आज भी मौजूद है. जिसमें देखा जा सकता है कि वो संयुक्त राष्ट्र की मीटिंग में बैठे हुए हैं और अचानक प्रस्ताव को फाड़कर देते हैं और वहां से उठकर चले भी जाते हैं. जबकि कुछ लोग उनके इस कदम को गलत भी मानते हैं. उन लोगों का मानना है कि अगर भुट्टो वो प्रस्ताव ना फाड़ते और राजी हो जाते तो बांग्लादेश नाम के एक अलग देश ना होता.
हालांकि उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान तरह-तरह की आलोचनाओं का भी शिकार करना पड़ा. जिसके चलते देश में काफी अशांति भी देखने को मिली उसी का नतीजा था कि जनरल जियाउल हक तख्तापलट कर दिया और देश में मार्शल लॉ का ऐलान कर दिया. संविधान को निलंबित करने के साथ-साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं को भी भंग कर दिया. इसके बाद जुल्फिकार अली भुट्टो कई बार जेल गए और बाहर आए.
जुल्फिकार अली भुट्टो को मार्च 1974 में एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के कत्ल के आरोप फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और कुछ महीनों तक चलने वाले इस केस में उन्हें मुजरिम ठहरा दिया. हालांकि भुट्टो और उनके परिवार ने उन्हें बचाने की हर मुमकिन कोशिश की लेकिन सभी नाकाम साबित हुईं. आखिर में 4 अप्रैल 1979 को उन्हें रावलपिंडी की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च को उनकी अपील को खारिज कर दिया था.
हैरानी तो तब होती जब उनकी फांसी का केस दोबारा अदालत में खुलता. साल 2011 में एक यह केस दोबारा खुला और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी सही नहीं थी. क्योंकि उस वक्त जुल्फिकार अली भुट्टो को फेयर ट्राइयल का मौका ही नहीं दिया था. मौजूदा सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इस फैसले पर शर्मिंदगी भी जाहिर की थी और कहा था कि पिछली गलतियों को ठीक किए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता.