वो किस्सा जब अचानक अकबर इलाहाबादी के घर पहुंच गई थी एक तवायफ, स्वागत में पढ़े थे ये शेर
आज हम आपको अकबर इलाहाबादी के बारे वो किस्सा बताने जा रहे हैं जब एक मशहूर तवायफ उनके घर अचानक पहुंच गई थी. तब उन्होंने उस तवायफ के आने की खुशी में एक शेर भी पेश किए थे जिसे सुनकर वो शरमा गई थी.

अकबर इलाहाबादी एक शानदार, तर्कशील, मिलनसार आदमी थे. उनकी कविता हास्य की एक उल्लेखनीय भावना के साथ कविता की पहचान थी. वो चाहे गजल हो नजम हो या फिर रुबाई या कित हो वो सबसे हटके अपना अलग अन्दाज़ पेश करते थे जिससे सुनकर बड़े बड़े राजा महाराजा कायल हो जाते थे. आज हम आपको अकबर इलाहाबादी के बारे में दिलचस्प बात बताने जा रहे हैं जो एक तवायफ से जुड़ी हुई है तो चलिए जानते हैं.
अकबर इलाहाबादी एक ऐसे कवि थे जो बातों-बातों के बीच ऐसा शेर पेश कर देते थे कि सुनने वाले सोच में पड़ जाते थे. अकबर इलाहाबादी हिन्दुस्तानी ज़बान और हिन्दुस्तानी तहज़ीब के बड़े मजबूत और दिलेर शायर थे. उनकी जबान और कलम से जब भी कोई शेर निकलती थी मशहूर हो जाती थी.
जब अकबर इलाहाबादी के घर पहुंची एक तवायफ
ये किस्सा उस समय का जब कोलकाता की मशहूर तवायफ गौहर जान की खूबसूरती और कला की खूब चर्चा होती थी. एक बार अचानक गौहर जान को अकबर इलाहाबादी से मिलने का मन हुऐ. जब गौहर उनके घर मिलने पहुंची तो अकबर इलाहाबाद उन्हें देखकर एक शेर पेश किया. इस शेर को सुनने के बाद गौहर जान का चेहरा शर्म से लाल हो गया.
कौन थी गौहर जान
गौहर जान कोलकाता की मशहूर तवायफ थी जो बाद में एक डांसर और गायिका के तौर पर देशभर में मशहूर हुई. एक बार गौहर जान एक बार इलाहाबाद गई थी उस दौरान वह तवायफ जानकी बाई के घर रुकी थी. गौहर कोलकाता वापस लौटने से पहले अकबर इलाहाबादी से मिलना चाहती थी. उन्होंने अपनी मन की बात जानकी बाई से कही. हालांकि उस दौरान अकबर इलाहाबादी शेरो शायरी नहीं करते थे वो रिटायर हो गए थे. जानकी बाई ने एक तांगा मगाया और अकबर इलाहाबादी के घर पहुंच गई. जानकी बाई ने गौहर जान की पहचान अकबर इलाहाबादी से करवाई और कहा कि आपसे मिलने की ख्वाहिश थी तो मैं गौहर खान को यहां ले आई.
तवायफ के स्वागत में पेश किए शेर
गौहर खान को देखकर अकबर इलाहाबादी मुस्कुराए और बोले- "मैंने ऐसा सौभाग्य पाने के लिए क्या किया, अन्यथा मैं न तो पैगम्बर हूं, न उपदेशक, न भक्त, न राजकुमार, न ही कोई संत हूं जो तीर्थयात्रा के योग्य समझा जाए" मैं एक न्यायाधीश हुआ करता था, लेकिन अब मैं सेवानिवृत्त हो गया हूं और केवल गरीब अकबर हूं, सोच रहा हूं कि आपकी सेवा में क्या उपहार पेश करूं. खैर, मैं यादगार के रूप में एक शेर लिखूंगा." यह कहते हुए, उन्होंने कागज पर शेर लिखा और उसे गौहर जान को दे दिया.
शेर कुछ यूं था...
ख़ुश-नसीब आज भला कौन है गौहर के सिवा।
सब कुछ अल्लाह ने दे रक्खा है शौहर के सिवा।।