ॐलोक आश्रम: हम सुखी कैसे हो सकते हैं भाग-1

हम सभी अपने जीवन में आनंद प्राप्त करना चाहते हैं। खुश होना चाहते हैं, सुखी होना चाहते हैं, हम सुखी कैसे हो सकते हैं। हम आनंद कैसे प्राप्त कर सकते हैं। जब हम खुश होते हैं या सुखी होते हैं तो क्या होता है। जब हम दुखी होते हैं तो क्या होता है।

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हम सभी अपने जीवन में आनंद प्राप्त करना चाहते हैं। खुश होना चाहते हैं, सुखी होना चाहते हैं, हम सुखी कैसे हो सकते हैं। हम आनंद कैसे प्राप्त कर सकते हैं। जब हम खुश होते हैं या सुखी होते हैं तो क्या होता है। जब हम दुखी होते हैं तो क्या होता है। सुखी कौन होता है और दुखी कौन होता है। यह शरीर वैसा ही रहता है जैसा पहले से है। सुख हम महसूस करते हैं अन्तर्रात्मा महसूस करती है और दुख को भी हम ही महसूस करते हैं। अगर हम सुखी होना चाहते हैं तो हमें अपने आप को भूलना होता है।

जो यह शरीर है और जो ये परिस्थितियां है इन सबको जैसे-जैसे हम भूलते जाते हैं हम सुखी हो जाते हैं। उननिषदों में कहा गया है कि ये जो आत्मा है वह ब्रह्म स्वरूप है और ब्रह्म सच्चिदानंद है सत चित और आनंद। अगर हमें परम आनंद की प्राप्ति करनी है तो हमें ब्रह्म स्वरूप का आस्वाद करना है। ब्रह्म कहीं बाहर नहीं है इस आत्मा में ही है। हमारे अंदर ही है। आत्मा ही ब्रह्म है। एक खिलाड़ी जब खेल रहा होता है, खेल को आस्वाद कर रहा होता है तो वह बाकी सारी दुनिया को भूल जाता है वह केवल अपने खेल को देख रहा होता है।

वह खेल पर ही फोकस कर रहा होता है। वो खेल पर ही एकाग्र कर रहा होता है। वह यह भी भूल जाता है कि मैं खेल रहा हूं। यह भी भूल जाता है कि मैं क्या कर रहा हूं। बस वो खो गया है और जब वो खो जाता है, सारी दुनिया से खो जाता है तो वह अपने आप से मिल जाता है। जो अपने आप से मिलने का क्षण होता है वही अत्यंत खुशी का क्षण होता है। एक व्यक्ति फुटबॉल या कोई अन्य खेल खेल रहा है। उसके खेल को देखने के लिए हजारों-लाखों दर्शक स्टेडियम में मौजूद हैं। लाखों लोग उसे घर पर, दुकान पर या जहां कभी भी टेलिविजन पर देख रहे हैं  और वो खेल में इतना मस्त हो गया कि उस खेल के साथ ही झूमने लगा, घूमने लगा। वो अपने आप को भूल गया, अपने शरीर को भूल गया। सारे दर्द और सारे दुख को भूल गया। वो खेले जा रहा है उस खेल को एन्जॉय कर रहा है। वो उसी में खो चुका है। उसके बाद जो खेल निखरकर आता है वो खेल अद्भुत होता है।

वही क्षण वही जीवन वो खुशी के रूप में जीता है। इसी तरह जब भी जिस भी अवस्था को व्यक्ति एन्जॉय करता है, खुशी महसूस करता है वो सारे संसार से अलग हो जाता है। जब एक स्मैकिया या चरसी स्मैक या चरस लेता है जिसे वो आनंद कहता है वो आनंद ऐसी अवस्था होती है जिसमें वो सबकुछ भूल चुका होता है। उसमें इतना तल्लीन हो जाता है, आंखें उसकी बंद हैं उसे कुछ भी सुध-बुध नहीं है। वो आनंद से विभोर हो रखा है। वो अलग ही दुनिया में चला जाता है। वह ऐसी अवस्था जब वो अपने आप को भूल गया। जो स्मैक का आनंद है जो चरस का आनंद है जो खेल का आनंद है यह उस आनंद की क्षणिक अनुभूतियां हैं। कोई भी आनंद सच्चा आनंद वही है जो दुख से रहित हो।

जिस आनंद के बाद दुख हो वह आनंद वांछनीय नहीं है, इच्छित नहीं है। आप अगर शराब पीओगे तो हैंगओवर आपको होगा, नशा करोगे तो शरीर टूटेगा, आपका अंग टूटेगा, खेलेगो तो इनसे अच्छा आनंद मिलेगा आपको लेकिन खेल का वह आनंद भी क्षणिक है। जो आनंद थोड़ी अवस्था के लिए है थोड़े समय के लिए है, थोड़ी अवस्था के लिए उसका आपसे मिलन हो रहा है और कहीं मिलन का धोखा हो रहा है। अगर आप नशा ले रहे हो तो वो जो मिलन का छलावा है उस छलावे का भी आनंद है। आप उसी को परमानंद मानकर उस छलावे में ही जिंदगी जी देते हो। एक परमआनंद है जो दुख मिश्रित आनंद नहीं है। जहां सुख ही सुख है। महात्मा बुद्ध जिसकी खोज में निकल गए। बुद्ध ने अपने राजपाट को त्याग दिया। अपना राजसी जीवन छोड़ दिया और गृह त्याग तक का निर्णय ले लिया।

First Updated : Monday, 22 August 2022