ॐ लोक आश्रम: किस तरह हमें जीवन जीना है

हम अपने जीवन में अपने अहंकार को पालते है पोसते हैं बड़ा करते हैं और एक दिन वो इगो इतना बड़ा हो जाता है कि वो हमारे अपने हाथ से बाहर निकल जाता है।

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हम अपने जीवन में अपने अहंकार को पालते है पोसते हैं बड़ा करते हैं और एक दिन वो इगो इतना बड़ा हो जाता है कि वो हमारे अपने हाथ से बाहर निकल जाता है। वही हमारे पुत्र के साथ होता है। पिता ने अपनी इच्छाएं अपने बेटे से करानी चाही। कई क्रिकेटर आए जो असफल हैं, कई एक्टर आए जो असफल हैं, कई राजनेता हैं जो असफल हैं। अगर उनको उनकी इच्छा के हिसाब से उनकी प्रकृति के हिसाब से कार्य करने और उसको चुनने की स्वतंत्रता दी गई होती तो वे सफल होते। 

हमें ये देखना है कि हम क्या करने के लिए बने हुए हैं। पुत्र को ये देखना है कि उसकी अपनी इच्छा क्या है उसको समझना पड़ेगा कि उसके जीवन का उद्देश्य क्या है। वो क्यों पैदा हुआ है वो क्या करने के लिए बना है, किस चीज को करने से उसे खुशी मिलती है। वो उसी चीज को करे जिसके लिए वो पैदा हुआ है न कि अपने पिता के मोह में पड़ कर अपने पिता की इच्छा को पूरा करने का प्रयास करे। अगर वो ऐसा करेगा तो खुद तो दुखी रहेगा ही और अपने पिता को भी दुखी करेगा। 

जहां हमारी वासनाएं जुड़ जाती हैं हमारी इच्छाएं जुड़ जाती हैं वहां हम जरूरत से ज्यादा उतारू हो जाते हैं। हमारा कोई कितना भी अजीज क्यों न हो हमें एक निष्कामता कायम करना चाहिए। हमारा पुत्र ही क्यों न हो हमें हर व्यक्ति के लिए जीवन में तटस्थ होना चाहिए तभी हम अच्छे गुण उसे दे सकते हैं। अच्छे गुण तभी दिए जा सकते हैं जब हम उसको आप अपने जीवन में उतारें। एक बच्चा अपने मां-बाप के कर्मों से सीखता है उनकी बातों से नहीं सीखता है। 

भगवदगीता हमें यही बतलाता है कि किस तरह अगली पीढ़ी को हम संदेश दें, किस तरह हम अपनी इच्छाओं को अगली पीढ़ी पर न लादें। गीता अगली पीढ़ी को ये भी बतलाता है कि उसे खुद को पहचानना है वो केवल अपने माता-पिता की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए नहीं है बल्कि वो खुद एक स्वतंत्र रूप में जन्मा है और उसके अपने कर्तव्य हैं और समाज में अपने लिए जरूरी स्थान ढूंढ़ना है तभी वो आगे बढ़ सकेगा।

First Updated : Thursday, 16 June 2022