ॐ लोक आश्रम: संसार में सत्ता के कितने स्तर हैं

अगर मैं शरीर को ही अपना समझुंगा तो ध्यान में जाते ही कभी हमें खुजली होगी, कहीं मेरे विचार आएंगे, कहीं मुझे दुख होने लगेगा, कोई अच्छे विचार आएंगे हंसी आने लगेगी, किसी की याद आने लगेगी और कुछ न कुछ वजहों से मेरा हाथ हिलता रहेगा।

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अगर मैं शरीर को ही अपना समझुंगा तो ध्यान में जाते ही कभी हमें खुजली होगी, कहीं मेरे विचार आएंगे, कहीं मुझे दुख होने लगेगा, कोई अच्छे विचार आएंगे हंसी आने लगेगी, किसी की याद आने लगेगी और कुछ न कुछ वजहों से मेरा हाथ हिलता रहेगा। दिमाग में कई तरह की बातें चलती रहेंगी। दिमाग स्थिर नहीं रहेगा। कभी ये सोचेगा कभी वो सोचेगा। एकाग्रता नहीं आ पाएगी और मन हमारा भटकता रहेगा। अपने शरीर के साथ हमने इतना तादात्म्य बना लिया है, इतना सामंजस्य बिठा लिया है कि शरीर को जरा सा भी कष्ट हो जाए तो हम बहुत ज्यादा कष्टमय हो जाते हैं। अपने आपको काफी दुख में काफी कष्ट में महसूस करने लगते हैं। इस शरीर को अंदर से थोड़ा दुख मिल जाए तो हम बहुत दुखी हो जाते हैं।

हम इसके सुख के लिए जिंदगी पर काम करते रहते हैं पर हम हैं क्या ये जानना जरूरी है। ये शरीर पैदा हुआ है ये जवान होगा ये बूढ़ा होगा ये नष्ट होगा लेकिन हम इसके बावजूद बच जाएंगे। अगर इस तरह हम जान लेते हैं समझ लेते हैं और इस तरह हम जीवन में आगे बढ़ते हैं तो लॉन्ग टर्म में हमारे दिमाग की बहुत सारी शक्तियां जो सोयी हुई हैं वो जागृत होती हैं। आम आदमी अपने दिमाग के एक-दो प्रतिशत से अधिक दिमाग का इस्तेमाल करता ही नहीं है। बहुत ही कम मात्रा में लोग अपने दिमाग का इस्तेमाल कर पाते हैं। योग ये बतलाता है कि हम अपने दिमाग का शत-प्रतिशत इस्तेमाल कर सकते हैं। दिमाग का शत-प्रतिशत इस्तेमाल कर इससे सकारात्मक कार्य कर सकते हैं।

उसकी पहली सीढ़ी यही है कि हम इस बात को जानें इस बात को समझें कि हम क्या हैं, हम ये शरीर नहीं हैं। इस शरीर से एक अलग सत्ता है जो हम हैं। यह शरीर विनाशी है, विनाशशील है, आज है कल नहीं होगा और हम इससे परे हैं। ये समझ लेने पर हमें मृत्यु का भय नहीं रहेगा। हमें दुख नहीं रहेगा हम सुखों के पीछे नहीं भागेंगे और वह अवस्था ऐसी होगी जो हमें लीडर बनाएगी, जो हमें समाज में सफल बनाएगी जो हमें राजनीति में सफल बनाएगी जो हमें खेल में सफल बनाएगी, शिक्षा में सफल बनाएगी, जीवन के हर क्षेत्र में सफल बनाएगी हम सुखी और समृद्ध जीवन की ओर आगे बढ़ सकेंगे। हम समाज का नेतृत्व कर सकेंगे। समाज का मार्गदर्शन भी कर सकेंगे। भगवान कृष्ण अर्जुन को यही बतलाना चाहते हैं कि इन क्षुद्र वासनाओं से ऊपर उठो और युद्ध से मत भागो, युद्ध करो। जीवन हमारा एक युद्ध है उस युद्ध में हमें आगे जाना है। अपने समस्त वासनाओं से ऊपर उठकर विवेक के आधार पर जीवन को आगे जीना है।

First Updated : Saturday, 28 January 2023