ॐलोक आश्रम: कर्म कैसे करना चाहिए है भाग-2

उसी तरह से जब इस ब्रह्माण्ड की रचना हुई, जब समय और काल की रचना हुई तब प्रजापिता ब्रह्मा ने एक ऐसे पदार्थ से इस संसार को बनाया जो एक अलग तरह का पदार्थ था जो इस संसार में था ही नहीं।

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उसी तरह से जब इस ब्रह्माण्ड की रचना हुई, जब समय और काल की रचना हुई तब प्रजापिता ब्रह्मा ने एक ऐसे पदार्थ से इस संसार को बनाया जो एक अलग तरह का पदार्थ था जो इस संसार में था ही नहीं। न तो वह सत था और न वो असत था। एक ऐसा पदार्थ था जो सत असत अनिर्वचनीय था। जिसके बारे में हमारी बुद्धि कुछ नहीं कह सकती। हमारी बुद्धि जहां तक जा नहीं सकती। ऐसे पदार्थों से जब हवन किया तब इस संसार की उत्पत्ति हुई। हवन का मतलब है ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एनर्जी। ऊर्जा जो एक रूप में थी उसे यज्ञ के माध्यम से एक दूसरे रूप में ले आए तो वह ब्रह्माण्ड निकलकर सामने आया।

आज का वैज्ञानिक सिद्धांत भी इसी ओर जा रहा है। आज का वैज्ञानिक सिद्धांत मानता है कि इस संसार की उत्पत्ति से पहले एक स्टेज थी स्टेज ऑफ सिंगुलेरिटी। जहां टाइम एंड स्पेस का कोई कॉन्सेप्ट नहीं था। कुछ था ही नहीं। ये ब्रह्माण्ड जैसा कुछ भी नहीं था। उस स्टेज ऑफ सिंगुलेरिटी से बिग बैंग के बाद इस सारे संसार की रचना हुई। ये ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एनर्जी है। भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि जिस तरह से हम यज्ञ में हवि डाल देते हैं और एनर्जी का ट्रांसफॉर्मेशन होता है। जो एनर्जी अन्न, मधु, दूध, गोमूत्र इत्यादि के रूप में रहती है जैसे ही हम उसको हवन मे डालते हैं, यज्ञ में डालते हैं, अग्नि में डालते हैं एनर्जी ट्रांसफॉर्म हो जाती है। उसका स्वरूप बदल जाता है और वह पूरे वायुमंडल में बिखर जाती है।

उसी तरह से जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की जो स्टेज ऑफ सिंगुलेरिटी थी उसके पहले की बात आज भी कुछ नहीं कह पाते वैज्ञानिक। हमारे वैज्ञानिक यही कहते हैं कि स्टेज ऑफ सिंगुलेरिटी एक ऐसी अवस्था है जहां इस संसार के वैज्ञानिक नियम लागू नहीं होते। उनमें कौन से वैज्ञानिक नियम लागू होते ये हम नहीं जानते। नहीं कह सकते। इसी बात को हमारे औपनिषदिक ऋषियों ने वैदिक ऋषियों ने यही कहा है कि न तो वो सत है न सत है वह क्या है इसके बारे में बहुत कुछ नहीं कहा जा सकता और वही एक ऐसी अवस्था थी जिसको यज्ञ करके हवन में डालकर ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की। अर्थात ये बिल्कुल वैज्ञानिक सिद्धांत है कि एक एनर्जी का ट्रांसफॉर्मेशन यज्ञ के माध्यम से प्रजापिता ब्रह्मा ने किया और इस संसार की उत्पत्ति हुई है। हवि के रूप में डाली गई सभी सामग्री अग्नि में समाहित होकर अग्नि में भस्म होकर वायुमंडल में चली जाती है।

अग्नि उसे द्विलोकों में ले जाती इसलिए हे अर्जुन तुम इस संसार को यज्ञ से उत्पन्न जानो और उसी यज्ञ में अपने सारे कर्मों की हवि दे दो। सारे कर्मों को यज्ञ को समर्पित कर दो और यज्ञ को जब हवि समर्पित हो जाएगी तो जो भी आपके कर्म हैं जिसके कुछ परिणाम उत्पन्न होने वाले हैं वो सब परिणाम उसी में खत्म हो जाएंगे और आपके कर्म जिस तरह से यज्ञ की अग्नि सारी आहूतियों को जलाकर भस्म कर देती है और उनको पूरे वायुमंडल में बिखेर देती है उसी तरह आपके कर्मों के परिणाम को यज्ञ की आहूति भस्म कर देगी और आपके कर्म कोई भी परिणाम उत्पन्न करने वाले नहीं होंगे। अगर हमारे कर्म कोई परिणाम उत्पन्न नहीं करेंगे न अच्छे न बुरे तो हमारा अगला जन्म भी नहीं होगा। अभी हम अपने कर्मों का परिणाम भोग रहे हैं पिछले जन्मों के। जब उन कर्मों के परिणाम समाप्त हो जाएंगे और नए कोई कर्म जनरेट नहीं होंगे तब हमारी आत्मा अपने स्वरूप में वापस आ जाएगी और हमारा परमपिता परमात्मा से मिलन हो जाएगा। भगवान कृष्ण यही कहते हैं।

First Updated : Sunday, 21 August 2022