जानिए अमावस्या की काली रात का रहस्य

जिस प्रकार हिन्दू धर्म में पूर्णिमा को मनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार हिन्दू धर्म में अमावस्या को भी मनाया जाता है । प्रकृति में जिस प्रकार हर वस्तु का अपना महत्व है ठीक वैसे ही दिन का भी अपना ही विशेष महत्व माना जाता है।

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जिस प्रकार हिन्दू धर्म में पूर्णिमा को मनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार हिन्दू धर्म में अमावस्या को भी मनाया जाता है । प्रकृति में जिस प्रकार हर वस्तु का अपना महत्व है ठीक वैसे ही दिन का भी अपना ही विशेष महत्व है। पूर्णिमा की रात चांद आकाश में चमकता हुआ बेहद खूबसूरत नजर आता है, लेकिन अमावस्या को चांद के दर्शन नहीं होते। अमावस्या की अंधेरी काली रात अनेक बुरी शक्तियों को अपने साथ लेकर आती है ।

हिन्दू पचांग के अनुसार माह के 30 दिनों को 15-15 दो पक्षो में बांटा गया है । जिन्हें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के नाम से जाना जाता है। कृष्ण पक्ष के अतिंम तिथि को अमावस्या की अंधेरी काली रात के नाम से जाना जाता है । जबकी शुक्ल पक्ष की अतिंम तिथि को पूर्णिमा की रात के नाम से जाना जाता है। एक वर्ष में आपको बता दे कि 12 पूर्णिमाएं तथा 12 अमावस्याएं आती हैं, जबकी पूर्णिमा को शुभ माना जाता है वहीं दूसरी ओर अमावस्या को अशुभ माना जाता है।

अमावस्या की काली रात बुरी शक्तियों को जन्म देती है जबकी पूर्णिमा की रात में अच्छी शक्तियों का जन्म होता है। कहा जाता है तांत्रिकों के लिए ये रात सबसे खास रात होती है । इस दिन वह अपनी सिद्धियों से विभिन्न शक्तियों को जाग्रत करते हैं साथ ही उनसे कार्य कराते हैं। इसी कारण इसे अमावस्या की खतरनाक रात कहा जाता है अमावस्या की रात एक ओर जहां तांत्रिकों की रात मानी जाती है तो वहीं दूसरी ओर इससे बचने के लिए भी कई प्रकार के प्रयास किए जाते हैं।इस रात बुरी शक्तियां अच्छी शक्तियों पर भारी पड़ जाती है ।

First Updated : Thursday, 22 December 2022
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