ॐलोक आश्रम: ईश्वर के क्या कर्तव्य हैं

भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि हर व्यक्ति को अपना कर्म करना चाहिए और बिना कर्म किए किसी को नहीं रहना चाहिए। भगवान यह कह रहे हैं तो ये प्रश्न ये उठता है कि सभी व्यक्ति अपना कर्म करें ईश्वर क्या कर्म करता है ईश्वर के क्या कर्तव्य हैं।

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भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि हर व्यक्ति को अपना कर्म करना चाहिए और बिना कर्म किए किसी को नहीं रहना चाहिए। भगवान यह कह रहे हैं तो ये प्रश्न ये उठता है कि सभी व्यक्ति अपना कर्म करें ईश्वर क्या कर्म करता है ईश्वर के क्या कर्तव्य हैं। भगवान कृष्ण गीता में कह रहे हैं कि मेरे भी कर्तव्य हैं। हालांकि मेरे अपने आप में कोई कर्तव्य नहीं हैं, कोई ड्यूटी नहीं है लेकिन फिर भी सारी प्रकृति के रूप में मैं हमेशा संचालित रहता हूं। मैं हमेशा एक्टिव रहता हूं। कभी भी मैं शांत नहीं रहता।

आज हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस बात का परीक्षण करेंगे कि किस तरह से प्रकृति एक्टिव है। क्या प्रकृति में कहीं कोई शांत कण हैं क्या प्रकृति में कहीं कोई स्थिर कण है या कोई ऐसा कण है या फिर कोई ऐसी स्थिति है कि हम कह सकते हैं कि यह कोई कर्म नहीं कर रहा है और ईश्वर इस स्थिति में स्थिर है बिना कर्म किए हुए है। भगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि पूरे तीनों लोकों में मुझे कोई कर्म नहीं है लेकिन फिर भी सारी प्रकृति सारी सृष्टि में मैं कर्म करता हूं अगर मैं एक क्षण भी कार्य करना बंद कर दूं, अगर प्रकृति एक क्षण के लिए भी कार्य करना बंद कर दे तो सारी प्रकृति अस्त-व्यस्त हो जाएगी। आज विज्ञान का युग है।

प्रकृति ने विज्ञान ने प्रकृति के क्षेत्र में बहुत कार्य किया है। आज हम देखते हैं कि प्रकृति का कोई भी कण स्थिर नहीं है। छोटे से छोटे कण पर चले जाइए परमाणु जिसके अंदर इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन है उसमें भी इलेक्ट्रॉन चक्कर लगा रहे हैं प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के। बड़े ग्रहों के रूप में देखें हम तो पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही है। ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। सूर्य भी आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा कर रहा है। आकाशगंगा भी निरंतर फैल रही है। ब्रह्मांड व्यापक हो रहा है। नित नए सितारे जन्म ले रहे हैं। पुराने सितारे ब्लैकहोल में बदल रहे हैं। हर जगह प्रकृति में परिवर्तन दिखाई देता है। कोई ऐसी स्थिति नहीं दिखाई देती जो परिवर्तन से रहित हो।

जहां पर कार्य न हो रहा हो ऐसी कोई जगह नहीं है। भगवान कहते हैं कि सृष्टि को मैंने बनाया ही इस तरह है। सृष्टि ही ऐसी है। तीन गुण हैं प्रकृति में सत्व, रज और तम और ये गुण इस तरह से कार्य कर रहे हैं कि दुनिया में कोई वस्तु स्थिर हो ही नहीं सकती। जो आपको स्थिर होने का भ्रम देती है जो स्थिर दिखती है वो स्थिर होने का भ्रम है। आपको लग सकता है कि आप स्थिर बैठे हों, यह कमरा स्थिर है यह जगह स्थिर है वस्तुत: ऐसा नहीं है। एक चलती हुई बस क्या स्थिर हो सकती है। जब पृथ्वी खुद गतिशील है तो पृथ्वी पर रहने वाली चीजें स्थिर कैसे हो सकती हैं। आप जिस टेबल पर हो उसके अंदर परमाणु हैं वो भी गतिशील है।

सारी प्रकृति आपको यही बतला रही है कि जीवन में क्रियाशील रहना है गतिशील रहना है। आप गति को क्रिया को कर्म को छोड़कर नहीं रह सकते और जो आपने कर्तव्य चुन लिया है उसी कर्तव्य के पथ पर आगे बढ़ना है क्योंकि ईश्वर ऐसा ही करते हैं ईश्वर की प्रकृति ऐसा ही करती है। जो गुण है प्रकृति के वो निरंतर क्रियाशील रहते हैं और उन क्रियाशील गुणों के कारण प्रकृति हमेशा ही क्रियाशील रहती है। स्थित होना भ्रम है, स्थिर होना भ्रम है। गति और स्थिरता दोनों सापेक्ष हैं बिना गति के स्थिरता का कोई मूंल्य नहीं है। कहीं भी निरपेक्ष रूप से स्थिरता है ही नहीं। जहां आप देखोगे परिवर्तन ही दिखाई देगा, गति ही दिखाई देगी और यही भगवान कृष्ण कहते हैं कि मैं एक क्षण के लिए भी कहीं भी स्थिर नहीं होता हूं, कहीं भी परिवर्तन शून्य नहीं होता हूं।

अगर मैं परिवर्तनशून्य हो जाऊं तो सारे विश्व का सिस्टम ही बिगड़ जाएगा। यह जो ब्रह्मांड विकसित हो रहा है जो ब्रह्मांड अपने गति से चल रहा है अपनी गति से परिवर्तित हो रहा है इस परिवर्तन को रोक दिया जाए तो सृष्टि का संपूर्ण क्रम बिगड़ जाएगा। भगवदगीता में भगवान कृष्ण की बातें आज विज्ञान ने साबित कर दी है विज्ञान उसी दिशा में आगे बढ़ता जा रहा है। भगवान कृष्ण ने हजारों साल पहले जो ज्ञान का अमृत दिया था आज विज्ञान उसी अमृत को और पुष्ट कर रहा है और बता रहा है कि भगवदगीता का सिद्धांत कितना वैज्ञानिक है और हम सबको इसी वैज्ञानिक सिद्धांत पर चलना चाहिए। हर मनुष्य को अपने हिस्से का कर्म करना चाहिए। क्योंकि कर्म तो ही जाएगा हम कुछ नहीं करेंगे तो वो भी कर्म होगा क्योंकि बिना कर्म के तो रह ही नहीं सकते हम। लेकिन अगर हम अपना कर्तव्य करेंगे तो हमारे समय का सदुपयोग होगा। हम जीवन में अपना कल्याण करेंगे, अपनी अन्तर्रात्मा को उन्नत करेंगे साथ ही हम अपने देश का अपने समाज का और अपने धर्म का भी कल्याण करेंगे।

First Updated : Saturday, 27 August 2022