ॐलोक आश्रम: कर्म क्यों करने चाहिए भाग -1

आज हम सभ्यता के उस दौर में पहुंच गए हैं जहां हमें कम से कम शारीरिक श्रम करने की जरुरत है। जहां हम शारीरिक श्रम को कमजोर और निंदित मानने लगे हैं। जहां कम काम करने को सुख माना जाने लगा है।

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आज हम सभ्यता के उस दौर में पहुंच गए हैं जहां हमें कम से कम शारीरिक श्रम करने की जरुरत है। जहां हम शारीरिक श्रम को कमजोर और निंदित मानने लगे हैं। जहां कम काम करने को सुख माना जाने लगा है। कोई भी कर्म या परिश्रम करना नहीं चाहता। लोग चाहते हैं कि वो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और उनके पास पैंसे आते रहें। आज कभी बात हो या फिर कोई चर्चा हो लोग कहते हैं कि आजकल तो बड़ा मजा है कोई काम नहीं करना पड़ता है।

भारत देश के अंदर लोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी नौकरी में आना चाहते हैं क्योंकि लोगों को लगता है कि सरकारी नौकरी में पहुंच जाओ वहां बड़ा आराम है। दफ्तर में कोई काम नहीं करना पड़ता और सैलरी मिल जाती है। ऐसी परिपाटी बन चुकी है कि लोग बैठे बिठाए जीवन का सारा सुख पाना चाहते हैं। जीवन में सुख को हमने इस तरह से परिभाषित किया है कि काम कम से कम करना पड़े या काम करना ही नहीं पड़े और हमें पैसे मिल जाएं। या थोड़ा काम करें और बहुत पैसे मिल जाएं। आराम ज्यादा हो पैसे बहुत ज्यादा हों। जीवन में काम न करना पड़े।

काम से भागना ये मनुष्य की प्रकृति में नहीं है लेकिन ये एक तरह का अब नया जीवन दर्शन बनकर आया है। ये जो नया जीवन दर्शन है वो कुछ कुछ पुराने जीवन दर्शन की तरह है जब समाज के कुछ लोग सांसारिक कार्यों को छोड़कर संन्यास ले लेते थे और संन्यास का जीवन जीते थे जंगलों में या आश्रमों में जीवन जीते थे। भगवत प्राप्ति के नाम पर जीते थे। जबकि उन्होंने अपनी इच्छाओं-वासनाओं का त्याग नहीं किया। संन्यास भी वो किसी इच्छापूर्ति के लिए ही लेते थे।

भगवान कृष्ण इस बारे में भगवदगीता में बतलाते हैं कर्मों का परित्याग कभी भी इष्ट नहीं है। आप कर्मों को न तो कभी छोड़ सकते हो और न आपको कभी कर्मों को छोड़ना चाहिए। बल्कि कर्मों की प्रशंसा करनी चाहिए। कर्मों को एप्रिसिएट करना चाहिए। आप अपनी इच्छा से अपने सामर्थ्य के हिसाब से कर्मों को चुनो और जो काम आपने चुन लिया है उस काम को आप करो। कार्य को करते रहो उसको एन्जॉय करो।

भगवदगीता में भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि जैसा श्रेष्ठ व्यक्ति कार्य करते हैं बाकी लोग उसी को फॉलो करते हैं उन्हीं का अनुसरण करते हैं। अगर श्रेष्ठ व्यक्ति समझने लगेंगे कि वो कम से कम काम करेंगे, बिना काम किए मुझे पैसे मिल जाएं तो बाकी लोग भी ऐसे ही समझने लगेंगे। अगर सारे व्यक्ति ऐसा समझने लगेंगे तो संसार, समाज और देश का पतन निश्चित है। क्योंकि कोई भी समाज कोई भी देश अकर्मण्यता को ही अपना आदर्श बना ले तो उसके पतन होने में कोई संदेह नहीं है। धीरे या तेज, आज या कल उसका पतन निश्चित है। क्योंकि कोई काम ही नहीं करेगा तो उसका पतन तो हो ही जाएगा। जब समाज का पतन होता है मूल्यों का पतन होता है तो व्यक्ति का पतन हो जाता है। हमें अगर जीवन में आगे बढ़ना है समाज को लेकर आगे जाना है देश को आगे लेकर जाना है तो भगवदगीता को पढ़ना है। भगवदगीता को जानना है। भगवदगीता को अपनाना है। भगवदगीता को फॉलो करना है। भगवान कृष्ण ने जो संदेश दिया वो किसी एक देश, एक समाज, एक क्षेत्र या एक समय के लिए नहीं है ये हमेशा के लिए है हर जगह के लिए है।

First Updated : Thursday, 25 August 2022