ॐलोक आश्रम: कर्म क्यों करने चाहिए भाग-2

भगवान कृष्ण वही कह रहे हैं कि आप काम करो, काम से मत डरो लेकिन फलों के प्रति जो आसक्ति है उस आसक्ति को परित्याग कर दो। आप अपनी ड्यूटी समझकर अपनी ड्यूटी को फॉलो करो, ड्यूटी तो आपको करना ही है।

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भगवान कृष्ण वही कह रहे हैं कि आप काम करो, काम से मत डरो लेकिन फलों के प्रति जो आसक्ति है उस आसक्ति को परित्याग कर दो। आप अपनी ड्यूटी समझकर अपनी ड्यूटी को फॉलो करो, ड्यूटी तो आपको करना ही है। क्योंकि अगर आप खुद ड्यूटी फॉलो नहीं करोगे तो अपने से नीचे वालों से कैसे कहोगे कि वो अपनी ड्यूटी फॉलो करें। सबसे पहले ऐसा उपदेश दो जो वाणी से नहीं आचरण से हो, अपने कर्मों से हो। अपने कर्मों से आपको सिद्ध करना है आपको साबित करना है कि आप योग्य व्यक्ति हो आप नेतृत्व करने लायक हो, आप श्रेष्ठ व्यक्ति हो और जब आप कर्मों के परिणाम को त्याग दोगे, कर्मों के परिणाम की चिंता नहीं करोगे, निष्काम भाव से काम करोगे तो जीवन में आपको हर जगह सफलता मिलती जाएगी।

आप आगे पहुंचकर श्रेष्ठ व्यक्ति बनकर जीवन के लिए एक आदर्श बनोगे। जीवन में आदर्शों का निर्माण करना समाज को आगे बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है। सनातन हमारी इतनी बड़ी सभ्यता और संस्कृति है वह इसलिए है कि हमारे पास बहुत आदर्श हैं। हमारे पास राम हैं हमारे पास कृष्ण हैं, हमारे पास बुद्ध हैं, हमारे पास नानक हैं हमारे पार कबीर हैं। इसके अलावा ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अनेकानेक ऋषि अग्सत्य ऋषि, वाल्मीकि ऋषि, अनेकानेक वैज्ञानिक आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, श्रेष्ठ लोगों से भरी-पूरी संस्कृति और सभ्यता है यही इसकी गहराई है। हम कुछ नई सभ्यताओं पर कुछ नए मतों पर जाएं जो अपने आप को धर्म कहते हैं। उंगली पर गिने हुए एक दो या तीन ही लोग मिल पाएंगे। शायद कहीं एक ही हो दूसरा भी न मिले। ये सभ्यता की संस्कृति की गरिमा है।

ये संभव होता है कर्म से, निष्काम कर्म से। तभी संस्कृति आगे बढ़ती है, सभ्यता आगे बढ़ती है, देश आगे बढ़ता है। श्रम को, मेहनत को, कर्म को हेय समझना या शांत बैठे रहना, बिना काम के लेटे पड़े रहना या जंगलों में चले जाना यह न तो सफल जीने का रास्ता है और न भगवान को प्राप्त करने का रास्ता। इन तरीकों से न तो हम अपने लक्ष्य पूरा कर सकते हैं और न ही एक आदर्श स्थापित कर सकते हैं न ही सभ्य समाज की कल्पना कर सकते है।

भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि अगर आदर्श बनाना है तो राजा जनक को बनाओ जिन्होंने पूरा राज्य काज किया और राज्य काज करते हुए उन्होंने भगवदप्राप्ति की। उन्होंने आत्मसाक्षात्कार किया। दुनिया में सबसे कठिन कार्य राज्य का संचालन है जहां छल, प्रपंच, राजनीति, युद्ध सबकुछ होता है। इस तरह निस्पृह भाव से, तटस्थ भाव से कर्मों के प्रति आसक्ति न रखते हुए भी राजा जनक ने कार्य किया। उस कार्य को करते हुए उन्होंने परमसिद्धि को प्राप्त किया। उन्होंने भगवदसाक्षात्कार किया। वह जीवन का आदर्श होना चाहिए। कर्मों का परित्याग नहीं बल्कि कर्मों के फल का परित्याग जीवन का आदर्श होना चाहिए। वही आदर्श जीवन में हमें आगे लेकर जाता है। अगर हम उस आदर्श के रास्ते पर चलते हैं तो हम श्रेष्ठ व्यक्ति बनते हैं।

हम आदर्श व्यक्ति बनते हैं। हम ऐसे व्यक्ति बनेंगे जिसका समाज अनुकरण करेगा। अगर श्रेष्ठ व्यक्ति कर्मठ होंगे, कर्म को करने वाले होंगे, जीवन में आगे बढ़ने वाले होंगे जो उसके पीछे समाज चलेगा वह भी श्रेष्ठ और कर्मठ व्यक्तियों का अनुकरण करके श्रेष्ठ और कर्मठ बन जाएगा। इस तरह भगवदगीता पर चलने पर भारत एक ऐसे देश के रूप में आगे बढ़ेगा जो विश्व गुरु हो सकता है, विश्व में सर्वश्रेष्ठ हो सकता है। अगर हम विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनना चाहते हैं, विश्व में आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमें इन सिद्धांतों पर चलना चाहिए। अपने कर्म को पूरा करना चाहिए, निष्काम भाव से करना चाहिए, पूरी सामर्थ्य के अनुसार करना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए ताकि हम उस प्रतिष्ठित स्थल पर पहुंच सके जिसका ये देश ये समाज ये सभ्यता अधिकारी है और हम अपने जीवन में परम सुख को परम श्रेष्ठ को प्राप्त कर सकें।

First Updated : Friday, 26 August 2022