Katchatheevu island: इलेक्शन से पहले पीएम मोदी ने क्यों उठाया कच्चाथीवू द्वीप का मुद्दा?
Katchatheevu island: इन दिनों देश में कच्चाथीवू द्वीप एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. भाजपा का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव के पहले चरण में तमिलनाडु में उसे बढ़त मिलेगी.

Katchatheevu island: 19 अप्रैल के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को कांग्रेस के साथ-साथ तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) को निशाना बनाने के लिए नया हथियार मिल गया. राज्य में 39 सीटों के लिए 76 महिलाओं समेत 950 उम्मीदवार मैदान में हैं. भाजपा ने विपक्ष के खिलाफ मोर्चा खोलकर सफलता के लिए एक नया अभियान शुरू किया है.
अभियान में शामिल हुए पीएम
भाजपा के इस हमले का नेतृत्व करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि कांग्रेस ने "संवेदनापूर्वक" कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को दे दिया. पार्टी को उम्मीद है कि यह राजनीतिक पकड़ हासिल करने और दक्षिणी राज्य में पैठ बनाने के उसके प्रयासों में काम आएगा. यह रिपोर्ट सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जवाब पर आधारित है और पीएम मोदी इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं.
पीएम ने लिखा कि ''आँखें खोलने वाली और चौंका देने वाली! नए तथ्यों से पता चलता है कि कैसे कांग्रेस ने बेरहमी से कच्चाथीवू को छोड़ दिया. इससे हर भारतीय नाराज है और लोगों के मन में यह बात फिर से बैठ गई है कि हम कभी भी कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते.'' उन्होंने रिपोर्ट साझा करते हुए एक्स पर पोस्ट किया. पीएम ने पोस्ट में कहा, ''भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना 75 सालों से कांग्रेस का काम करने का तरीका रहा है.''
नेहरू पर भी उठे सवाल
मोदी की टिप्पणी ने भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के दावों के सवाल पर कांग्रेस पर उनके हमले के साथ-साथ दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु की ओर उनके चुनावी दबाव को दिखाया. उन्होंने जिस मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, वह एक आरटीआई क्वेरी के जवाब पर आधारित है, जो तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई को 1974 में पाक जलडमरूमध्य के क्षेत्र को पड़ोसी देश को सौंपने के तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के फैसले पर मिली थी. रिपोर्ट में भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का स्रोत इस मुद्दे पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की टिप्पणियों का भी जिक्र किया गया है, कि उन्हें द्वीप पर दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी.
मीडिया रिपोर्ट के हवाले से नेहरू ने लिखा ''मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई झिझक नहीं होगी. मुझे यह पसंद नहीं है कि यह अनिश्चित काल तक लंबित रहे और इसे फिर से संसद में उठाया जाए.''
मछुआरों की गिरफ्तारी के मामले
अन्नामलाई ने कहा कि वह द्वीप, जिस पर तमिलनाडु के मछुआरों को हजारों सालों से बिना किसी रुकावट के मछली पकड़ने का अधिकार था, इसे गुप्त तरीके से श्रीलंका को दे दिया गया था. नतीजतन, समुद्र में असहाय मछुआरों को गिरफ्तार किया जाना और भारत सरकार द्वारा उन्हें छुड़ाने और वापस लाने के लिए श्रीलंका से बातचीत करना रोज की कहानी बन गई.
कच्चाथीवु 1974 में एक जटिल मुद्दा बन गया जब भारत दोनों देशों के बीच समुद्री सीमाओं को तय करने के लिए, रामेश्वरम के पूर्व में 163 एकड़ के द्वीप को श्रीलंका में स्थानांतरित करने पर सहमत हुआ. लेकिन 25,000 मछुआरों, जिनके पास 1,000 ट्रॉलर थे, ने शिकायत की कि इससे उनका मछली पकड़ने का क्षेत्र कम हो गया है. उनकी संख्या बढ़ गई है और समय के साथ समस्या और भी गंभीर हो गई है क्योंकि जल क्षेत्र में गश्त करने वाला श्रीलंका नियमित रूप से भारतीय मछुआरों को पकड़ लेता है और उनकी नौकाओं को जब्त कर लेता है.
मछुआरों को साधने की कोशिश?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, विशेषज्ञों का कहना है कि ''यह एक भावनात्मक मुद्दा है जो राज्य के रामेश्वरम क्षेत्र के मछुआरों ही नहीं, बल्कि कई लोगों के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि कच्चाथीवू लगातार एक चुनौती बना हुआ है. श्रीलंकाई नौसेना द्वारा हिरासत में लिए जाने के अलावा, मछुआरों को समय के साथ बढ़ती लागत और कम होती पकड़ का भी सामना करना पड़ा है. उनका तर्क है कि दोनों देशों के लिए एकमात्र समाधान दोनों देशों के मछुआरों के लिए पानी मुक्त छोड़ने पर सहमत होना है.''
बीजेपी का गेम प्लान यह है कि अब कच्चातिवू को खड़ा करके वह तमिलनाडु के मतदाताओं के साथ अपनी पहचान बढ़ा सकती है. लेकिन अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का तर्क है कि यह केवल मोदी की हताशा है.