क्या एनडीए सरकार को आसानी से चला पाएंगे PM मोदी, जानें क्या हैं चुनौतियां?
PM Modi: 4 जून को परिणाम बिल्कुल प्रधानमंत्री की उम्मीदों के अनुसार, नहीं रहे, लेकिन अगली शाम जब उन्होंने अपने कैबिनेट सहयोगियों को संबोधित किया, तब पीएम ने उन्हें बताया था कि वह गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक चलाएंगे और "गठबंधन धर्म" को पूरी तरह निभाएंगे.
PM Modi: पीएम मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने गए हैं, इस बार वे गठबंधन सरकार के मुखिया हैं, उनके मंत्रिमंडल में कुल 72 मंत्री शामिल है. रविवार (9 जून) को जब उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अपने पद और गोपनीयता की शपथ ली तो लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या मोदी गठबंधन सरकार चला पाने में सक्षम हैं? अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्री रहने के दौरान1996, 1998 और 1999 में गठबंधन सरकार चलाई. दूसरी ओर मोदी ने गुजरात (2001 से 2014) और पिछले 10 वर्षों से राष्ट्रीय स्तर पर बहुमत वाली सरकारें चलाई हैं.
4 जून को परिणाम बिल्कुल प्रधानमंत्री की उम्मीदों के अनुसार, नहीं रहे, लेकिन अगली शाम जब उन्होंने अपने कैबिनेट सहयोगियों को संबोधित किया, तब पीएम ने उन्हें बताया था कि वह गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक चलाएंगे और "गठबंधन धर्म" को पूरी तरह निभाएंगे.
मोदी का नया मंत्रिमंडल निरंतरता का देता है संकेत
पीएम मोदी का नया मंत्रिमंडल निरंतरता के साथ-साथ सावधानी का भी संकेत देता है. उन्होंने अपने कई पुराने और अनुभवी मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को बनाए रखा है, ताकि यह दिखाया जा सके कि स्थिति राजनीतिक रूप से स्थिर है और वे इसे नियंत्रित कर रहे हैं. वे अपनी पार्टी के भीतर किसी भी तरह की गड़बड़ी का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं.
टीडीपी को 16, जेडीयू को मिली हैं 12 सीटें
टीडीपी (16 सांसद) और जनता दल यूनाइटेड (12) प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरे हैं और यह आश्चर्यजनक होगा यदि वे कदम से कदम मिलाकर नहीं चल रहे हैं. इन दोनों के पास संयुक्त मोर्चा सरकारों और वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में शासन करने का लंबा अनुभव है. चंद्रबाबू नायडू हमेशा से ही शांत खिलाड़ी रहे हैं और अपने राज्य और इसकी राजधानी अमरावती के लिए वित्तीय पैकेज की तलाश कर रहे हैं.
फिर भी अजीब है कि वह 16 सांसदों के बावजूद केवल एक कैबिनेट मंत्री पद और एक राज्य मंत्री (एमओएस) पद के लिए सहमत हुए हैं. वहीं इतनी ही संख्या नीतीश कुमार की जेडीयू को दी गई है. उसके पास 12 सांसद होने के बावजूद भी वह आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. सवाल यह है कि क्या नायडू अभी भी लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए जोर लगा रहे हैं या फिर वह अपने राज्य के लिए वित्तीय लाभ से संतुष्ट हो जाएंगे.
गठबंधन सरकार में स्पीकर एक महत्वपूर्ण पद होता है. जैसा कि एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया, "जिस पार्टी को स्पीकर का पद मिलता है, सरकार का भाग्य उसके हाथ में होता है.” बहुमत के बिना सत्तारूढ़ दल के लिए बहुमत हासिल करने के लिए छोटी पार्टियों को तोड़ना आकर्षक होगा. पी वी नरसिम्हा राव, जिन्होंने 1991 में 240 सीटें जीती थीं, दो साल बाद छोटी पार्टियों को तोड़कर बहुमत हासिल किया. फिलहाल जदयू भी दिल्ली और बिहार में अपने को मजबूत चाहेगी और अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी का सामना करने के लिए तैयार हो जाएगी.
पिछले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री ने अपना रुख बदला है. उन्होंने साफ कर दिया है कि यह सरकार मोदी या भाजपा सरकार नहीं बल्कि एनडीए सरकार है. शुरू से ही एनडीए को प्राथमिकता दी गई. राजनाथ सिंह ने एनडीए संसदीय दल के नेता, भाजपा संसदीय दल और लोकसभा के नेता के रूप में पीएम मोदी का नाम प्रस्तावित किया और अमित शाह और नितिन गडकरी ने इसका समर्थन किया. पहले बीजेपी संसदीय दल के नेता का चुनाव एनडीए के नेता के चुनाव से पहले होता था.
पीएम मोदी ने अपने मंत्रियों को चुनने का प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार भी छोड़ दिया, जो गठबंधन सरकार में पहली घटना है. पहले की तरह गठबंधन सहयोगियों के नेताओं ने अपनी पार्टियों से उन लोगों के नाम भेजे, जिन्हें मंत्री पद की शपथ दिलाई जानी चाहिए. वास्तव में प्रधान मंत्री एक कदम आगे बढ़े और कथित तौर पर नई सरकार की रूपरेखा पर पार्टी सहयोगियों अमित शाह, जेपी नड्डा और बीएल संतोष के साथ मैराथन बैठकें की. एनडीए-3 में जो भी मंत्री बने, उन सभी को बुलाते हुए जेपी नड्डा समन्वयक की भूमिका निभाते नजर आए.
चुनौतियां क्या हैं?
पीएम मोदी को तीन मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. उन्हें सहयोगियों को साथ लेकर चलना होगा क्योंकि मंत्रिमंडल में जगह मिलना कहानी का केवल एक हिस्सा है. सहयोगियों ने अग्निपथ योजना की समीक्षा पर जोर दिया है, जो उत्तरी राज्यों में एक भावनात्मक चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है और इसमें बदलाव की संभावना है. समान नागरिक संहिता (UCC) को ठंडे बस्ते में डाले जाने की संभावना है. अब ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करना भी मुश्किल हो गया हो. यह देखना बाकी है कि बीजेपी नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जाति जनगणना की मांग से कैसे निपटती है?
हिंदू-मुस्लिम बयानबाजी भी कम से कम कुछ समय के लिए पीछे रह सकती है. टीडीपी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि आंध्र प्रदेश में (ओबीसी कोटा के तहत) मुसलमानों के लिए मौजूद 4% आरक्षण को छोड़ने का उसका कोई इरादा नहीं है। प्रचार अभियान के दौरान भाजपा ने धार्मिक आधार पर मुसलमानों को आरक्षण देने पर तीखा हमला बोला.
दूसरी बड़ी चुनौती
पीएम मोदी को दूसरी चुनौती लोकसभा में मजबूत विपक्ष से मिलेगी. सदन में 232 सदस्यों के साथ जोरदार, शोर-शराबा, हंगामेदार और सरकार को मुश्किल में डालने वाला होगा. बिना चर्चा के कानून पारित करना या सदस्यों को अयोग्य घोषित करना और निलंबित करना अधिक कठिन होगा जैसा कि पिछले कार्यकाल के दौरान हुआ था.