नहीं आसमाँ तेरी चाल में नहीं आऊँगा | अहमद महफूज़

नहीं आसमाँ तेरी चाल में नहीं आऊँगामैं पलट के अब किसी हाल में नहीं आऊँगामेरी इब्तिदा मेरी इंतिहा कहीं और हैमैं शुमार-ए-माह-ओ-साल में नहीं आऊँगा

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नहीं आसमाँ तेरी चाल में नहीं आऊँगा

मैं पलट के अब किसी हाल में नहीं आऊँगा


मेरी इब्तिदा मेरी इंतिहा कहीं और है

मैं शुमार-ए-माह-ओ-साल में नहीं आऊँगा


अभी इक अज़ाब से है सफ़र इक अज़ाब तक

अभी रंग-ए-शाम-ए-ज़वाल में नहीं आऊँगा


वही हालतें वही सूरतें हैं निगाह में

किसी और सूरत-ए-हाल में नहीं आऊँगा


मुझे क़ैद करने की ज़हमतें न उठाइए

नहीं आऊँगा किसी जाल में नहीं आऊँगा 


मैं ख़याल ओ ख़्वाब हिसार से भी निकल चुका

सो किसी के ख़्वाब ओ ख़याल में नहीं आऊँगा


न हो बद-गुमाँ मेरी दाद-ख़्वाही-ए-हिज्र से

मेरी जाँ मैं शौक़-ए-विसाल में नहीं आऊँगा.

First Updated : Friday, 26 August 2022