जानिए कैसे जन्म हुआ भगवान भोलेनाथ का?

हमारे वेदों में हमें बताया गया है की इस सृष्टि में जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। वेदों के अनुसार, ईश्वर या परमात्मा अजन्मा, अजर-अमर हैं। अजन्मा का अर्थ होता है जिसने जन्म नहीं लिया और न ही भविष्य

Sagar Dwivedi
Sagar Dwivedi

हमारे वेदों में हमें बताया गया है की इस सृष्टि में जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। वेदों के अनुसार, ईश्वर या परमात्मा अजन्मा, अजर-अमर हैं। अजन्मा का अर्थ  होता है जिसने जन्म नहीं लिया और न ही भविष्य में जन्म लेगा। वेदों के अनुसार भगवान अप्रकट, निर्विकार , निराकार व निर्गुण हैं। अप्रकट का अर्थ होता है जिसका जन्म न हुआ हो अर्थात जिसकी उत्पत्ति किसी के गर्भ से न हो, निर्विकार का अर्थ होता है जिसमें किसी भी प्रकार का कोई दोष न हो, निराकार का अर्थ  होता है जिसका कोई निर्धारित आकार न हो व निर्गुण का अर्थ  होता है जिसमे किसी भी प्रकार का गुण न हो।

अब हमारे मन में यह सवाल आता है की फिर हमारे प्रिय भगवान भोलेनाथ क्या हैं? उन्होंने किसी न किसी रूप में जन्म लिया है तभी तो भगवन भोलेनाथ का विवाह हुआ। तभी तो उन्होंने कई राक्षसों को वरदान दिया बहुत से राक्षसों का वध किया। असल में जब हम भगवान भोलेनाथ को शिव कहते हैं तब हम निराकार ईश्वर की बात करते हैं और जब हम उन्हें सदाशिव कहते हैं तो हम महान ईश्वरीय आत्मा की बात करते हैं और जब हम शंकर या महेश की बात करते हैं तो हम सती या देवी पार्वती के पति महादेव की बात करते हैं। बस हम समस्त हिन्दू यही अंतर नहीं जान पाते हैं और सबको एक ही मान लेते हैं।

शिवपुराण में वर्णित है की भगवान भोलेनाथ स्वयंभू हैं अर्थात उनका जन्म स्वयं से ही हुआ है। वहीं विष्णुपुराण में उल्लेखित है की भगवान भोलेनाथ का जन्म भगवान विष्णु के माथे से उत्पन्न तेज से हुआ और उनके नाभि से निकले हुए कमल से भगवान ब्रम्हा जी का जन्म हुआ। शिव पुराण में यह भी उल्लेखित है की एक बार भगवान शिव अपने घुटने मल रहे थे उनके घुटने से निकले मैल से भगवान विष्णु का जन्म हुआ।

इस कथा के अलावा कुछ और पौराणिक कथायें है

बुजुर्ग लोग बताते हैं की भगवान ब्रम्हा और भगवान विष्णु के बीच इस बात को लेकर बहस हुई की उन दोनों में से महान कौन है। इस बात को लेकर जब बहस बहुत ज्यादा बढ़ गयी तब भगवान शिव एक विशालकाय खंभे के रूप में प्रकट हुए। वे दोनों उस खंभे के रहस्य को समझ नहीं पाए तभी अचानक उस खंभे से एक आवाज आई की आप दोनों में से जो भी सबसे पहले खंभे के आखिरी छोर तक पहुँचेगा वही सबसे महान होगा, खंभे से निकली आवाज को सुनते ही भगवान ब्रम्हा ने एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे का आखिरी छोर ढूढ़ने के लिए आकाश में उड़ गए।

वहीं, भगवान विष्णु ने वराह का अवतार लिया और धरती के अंदर खंभे का छोर ढूढ़ने के लिए निकल गए, दोनों देवों ने खंभे का छोर ढूढ़ने का खूब प्रयास किया किंतु सफलता किसी को नहीं मिली आख़िरकार दोनों देवों ने अपनी हार को स्वीकार किया। इस घटना के बाद भगवान भोलेनाथ अपने असली स्वरुप में आ गए, फिर भगवान ब्रम्हा और विष्णु ने माना की भगवन भोलेनाथ सबसे महान हैं. वह खंभा भगवान भोलेनाथ के अजर-अमर होने का प्रमाण है, इसी कारण यह खा जाता है की भगवान भोलेनाथ स्वयंभू हैं |

एक कथा और है की विष्णुपुराण में उल्लेखित भगवान शिव के जन्म की एक कहानी और है की एक बार भगवान ब्रम्हा को एक बच्चे की जरुरत थी जिसके लिए उन्होंने घोर तपस्या की। तभी अचानक से भगवान  ब्रम्हा की गोद में एक रोता हुआ बालक प्रकट हुआ और जब भगवान  ब्रम्हा ने उस बच्चे से रोने का कारण पूछा तो बच्चे ने बताया की उसका कोई नाम नहीं है जिस वजह से वह रो रहा है। तब भगवान ब्रम्हा ने उस रोते हुए बच्चे को 'रूद्र' नाम दिया जिसका अर्थ होता है 'रोने वाला', अपना यह नाम सुनकर भी उस बालक ने रोना बंद नहीं किया। इस तरह रोते हुए बच्चे को शांत कराने के लिए भगवन ब्रम्हा ने उसे 8 नाम दिए। भगवन शिव के 8 नामों (रूद्र, भाव, उग्र, शर्व, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से जाने गए। शिव पुराण के अनुसार इन नामों को पृथ्वी पर लिखा गया था।

भगवान शिव का इस प्रकार भगवान ब्रम्हा के पुत्र के रूप में जन्म लेने के पीछे भी विष्णुपुराण की एक कथा है। इस कथा के अनुसार जब तीनों लोक समेत पूरा ब्रम्हांड जलमग्न था तब त्रिदेव (ब्रम्हा, विष्णु, महेश) के अलावा कोई भी जीव जीवित नहीं था। तब केवल भगवन विष्णु ही क्षीरसागर के जल सतह पर शेषनाग के ऊपर लेते हुए नजर आ रहे थे। तब उनकी नाभि से एक कमल में भगवन ब्रम्हा जी का जन्म हुआ। जब भगवान ब्रम्हा और विष्णु सृष्टि  निर्माण के संबंध में चर्चा कर रहे थे तभी भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए।

ब्रम्हा जी ने भगवान शिव को पहचानने से इंकार किया तो भोलेनाथ के रूठ जाने के भय से भगवान विष्णु ने ब्रम्हा जी को दिव्यदृष्टि प्रदान करके भोलेनाथ की याद दिलाई, ब्रम्हा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने भगवान भोलेनाथ से क्षमा माँगी और भगवान शिव से अपने पुत्र के रूप में पैदा होने का आशीर्वाद माँगा। भगवान भोलेनाथ ने ब्रम्हा जी आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा की मैं आपके पुत्र के रूप में जन्म लूँगा। जब भगवान ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना की तो उन्हें एक बच्चे की आवश्यकता पड़ी और उन्हें भगवान भोलेनाथ का दिया हुआ आशीर्वाद ध्यान आया। अतः ब्रम्हा जी ने तपस्या की और भगवान भोलेनाथ उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर बालक शिव के रूप में उनकी गोद में प्रकट हुए।

भगवान भोलेनाथ को महाकाल, किरात, शंकर, शिव,चंद्रशेखर , आदिदेव, मृत्युञ्जय, नीलकंठ आदि नामों से भक्त बुलाते हैं। भगवान भोलेनाथ के 19 अवतार ( शरभ, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, अश्वत्थामा, वीरभद्र, गृहपति, ऋषि दुर्वासा, हनुमान, वृषभ ,यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, किरात ,सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, अर्धनारीश्वर, सुरेश्वर) हैं।  शिवपुराण में लिखा है की भगवान विष्णु, ब्रम्हा, और भोलेनाथ में कोई अंतर नहीं है ये देव ब्रम्ह के अंश हैं जो की सृष्टि के कल्याण के लिए अलग-अलग रूप में आये। शिवपुराण में एक श्लोक है 'वेदो शिवम शिवो वेदम' इस श्लोक में भगवान भोलेनाथ को रूद्र से शिव बनने का ज्ञान प्राप्त होता है |

calender
26 August 2022, 01:53 PM IST

जरुरी ख़बरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो