ॐ लोक आश्रम: मजा किसको कहते हैं भाग-2

यह निंदित कर्म है, गर्हित कर्म है और ऐसे कर्मो को शुरू करने में लग सकता है कि स्थिति आपके नियंत्रण में है लेकिन कब आपके नियंत्रण से बाहर हो जाएंगी और किस हद तक आप चले जाओगे ये आपको भी पता नहीं है।

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यह निंदित कर्म है, गर्हित कर्म है और ऐसे कर्मो को शुरू करने में लग सकता है कि स्थिति आपके नियंत्रण में है लेकिन कब आपके नियंत्रण से बाहर हो जाएंगी और किस हद तक आप चले जाओगे ये आपको भी पता नहीं है। जो नकारात्मकता आपके शरीर से आपके कर्मों से परिलक्षित होती है। अगर आप किसी का बुरा करने जाते हो तो वो सबसे पहले आपके दिमाग में आती है आपके विचारों में आती है। आपके मस्तिष्क को प्रभावित करती है। आपके शरीर को प्रभावित करती है। नकारात्कमता इतनी भर जाती है लोगों में कि दूसरों को उड़ाने के लिए खुद मानव बम बन जाते हैं। इस तरह के कर्म व्यक्ति को ऐसे जाल में फंसा देते हैं कि जिनसे बाहर आना बहुत मुश्किल होता है।

इसलिए भगवान कृष्ण बुद्धयोग की बात कर रहे हैं। ऐसे निंदित कर्म में आपकी रूचि ही नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसे कर्म आपको पसंद आ रहे हैं आपको अच्छा लग रहा है तो आपको रूकने और विचार करने की आवश्यकता है और बैठकर बुद्ध से चिंतन कीजिए। इस तरह जो आनंद के लिए कार्य किए जा रहे हैं जो सुख के लिए कार्य किए जा रहे हैं और निंदित कामों में करने में अगर आपको आनंद आ रहा है तो समझो आपका भविष्य बड़ा विकराल है। इस तरह के काम व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर देते हैं।

सबसे पहले आप वासनाओं को किनारे कीजिए और बुद्धि के द्वारा सोचना चालू कीजिए। वासनाएं हमेशा बुद्धि के नियंत्रण में रहना चाहिए। वासनाओं की पूर्ति जरूरी है। आपके जीवन में सुख भी आएंगे दुख भी आएंगे। उनको तटस्थ रहना है। सुखों के पीछे मत भागो और दुखों से डरो भी मत। वासनाओं पर बुद्धि का नियंत्रण करो। आप जीवन में न अच्छे की इच्छा करो और न बुरे की इच्छा करो। दो पहिए हैं दोनों पहियों को हटा दो। न जीवन में आपको कुछ अच्छा चाहिए न बुरा चाहिए। जो भी कर्म करो वो प्रभु को समर्पित कर दो।

भगवान को समर्पित कर कर्म करते जाओ जीवन में आगे बढ़ते जाओ। आप देखोगे कि आपके साथ सब कुछ अच्छा होता जाएगा। जीवन में खुशियां ही खुशियां आती जाएंगी। यही कर्मों की कुशलता है। यही योग है। आप शुभ और अशुभ, अच्छा और बुरा दोनों का परित्याग कर दो। जबतक आप अच्छाई के पीछे भागते रहोगे बुराई आपके पीछे लगी रहेगी। बुराई से डरोगे अच्छाई की ओर भागोगे, भागते-भागते जीवन को नष्ट कर लोगे। इसलिए बुराई को छोड़ो ही छोड़ो, अच्छाई को भी छोड़ दो। जब अच्छाई और बुराई दोनों को आप छोड़ दोगे, सीधे अपने कर्तव्य के मार्ग पर चलते जाओगे, सारी अच्छाई और बुराई प्रभु के चरणों में समर्पित करते हुए जीवन में आगे बढ़ते जाओगे। आप देखोगे कि बुराई कहीं गुम गई है जो सिर्फ अच्छाई ही अच्छाई बची है।

First Updated : Friday, 17 March 2023