ॐ लोक आश्रम: पुनर्जन्म का सिद्धांत क्या है भाग-1

एक्चुअल और वर्चुअल वर्ल्ड दोनों को हमें जानना और समझना जरूरी है। कुछ का मानना है कि दोनों दुनिया में काफी फर्क है। दोनों अलग-अलग दुनिया है लेकिन दुनिया में दो मत हैं एक मत तो ये मानता है कि वर्ल्ड एक्चुअल और वर्चुअल दोनों है और दूसरा मत जो है वो यह मानता है कि जो दिखाई देता है वही है उसके अलावा कुछ भी नहीं है।

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एक्चुअल और वर्चुअल वर्ल्ड दोनों को हमें जानना और समझना जरूरी है। कुछ का मानना है कि दोनों दुनिया में काफी फर्क है। दोनों अलग-अलग दुनिया है लेकिन दुनिया में दो मत हैं एक मत तो ये मानता है कि वर्ल्ड एक्चुअल और वर्चुअल दोनों है और दूसरा मत जो है वो यह मानता है कि जो दिखाई देता है वही है उसके अलावा कुछ भी नहीं है। जिसे हम महसूस नहीं कर सकते उसकी हम सत्ता नहीं मान सकते। यानी जो अस्तित्व में है वही वास्तविक है वही एक्चुअल है।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं आखिर वास्तविकता क्या है। वो कहते हैं जो व्यक्ति यही समझता है कि ये शरीर है और ये समझता है कि ये शरीर दूसरे शरीर को नष्ट कर दे रहा है, आत्मा भी नष्ट हो जा रही है शरीर के साथ और एक आत्मा दूसरे आत्मा को नष्ट कर रही है तो वो दोनों व्यक्ति, जो व्यक्ति ये समझ रहें हैं कि मैं किसी को मार दे रहा हूं और मैं किसी के अगले अस्तित्व को ही खत्म कर दे रहा हूं ऐसा व्यक्ति और ऐसा व्यक्ति जो सोचता है कि मैं मर गया तो मेरा अस्तित्व ही खत्म हो गया तो ऐसे दोनों व्यक्ति इस बात को नहीं जानते हैं कि न तो आत्मा कभी मारा जा सकता है और न कभी मरता है। आत्मा कभी नहीं मरता है।

अर्थात् आप एक सापेक्षिक जगत में रह रहे हो। इसको एक उदाहरण से समझने की जरूरत है जैसे कि एक लोहा है उस लोहे की कील बनी हुई है उसी लोहे की पिलास बनी हुई है। आप कील को खत्म कर सकते हो, पिलास को खत्म कर सकते हो लेकिन लोहे को खत्म नहीं कर सकते हो। आप कील को गलाओगे वो लोहा बन जाएगा। आप पिलास को गलाओगे तो वो लोहा बन जाएगा। फिर उस लोहे से आप कुछ और कर सकते हो आप कुछ और बना सकते हो लेकिन फिर उसी लोहे से जो कुछ भी आप सामान बनाओगे उसको भी गलाने से लोहा ही बन जाएगा यानी की लोहा को आप किसी भी हालत में खत्म नहीं कर सकते उसका स्वरूप अलग-अलग सामानों और वस्तुओं की तौर पर बदल सकते हो और आप लोहे के उसी अलग-अलग रूपों को खत्म कर सकते हो लेकिन लोहे को खत्म नहीं कर सकते।

यानी कि लोहा को गलाने से लोहा ही बचता है। यही एक तरह का पुनर्जन्म है जिस तरह यह शरीर खत्म हो गया एक नया शरीर धारण कर लिया उसी तरह लोहे की कील गलकर लोहे में मिल गई और उन कीलों के गलने से लोहा बन गया और उन लोहे आपने पिलास या पेंचकस बना दिया। या फिर उसको गलाया तो कुछ और बना दिया। ये क्रम आगे चलता रहेगा और लोहा का अस्तित्व बना रहेगा। लोहा कभी खत्म नहीं होगा। अगर कोई व्यक्ति ये सोचता है कि लोहे की कील के गलने से उसका लोहा भी खत्म हो गया तो वो गलत है। लोहा अपने आप में बना रहता है उसका स्वरूप बदलता है।

First Updated : Sunday, 29 January 2023