ॐलोक आश्रम: धर्म को किस तरह का कार्य करना चाहिए भाग-3

धर्म वास्तव में होता है आत्म बलिदान। अपने इगो को खत्म करना। कबीर कहते हैं कि जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहीं।

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धर्म वास्तव में होता है आत्म बलिदान। अपने इगो को खत्म करना। कबीर कहते हैं कि जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहीं। प्रेम गली अति सांकरी जामे दो न समाय। अर्थात् जबतक मेरा इगो था मैं था तब तक मुझे भगवान के दर्शन नहीं हुए, तबतक मैं ईश्वरत्व तक गया ही नहीं। न ही कोई ईश्वरत्व की ओर जा सकता है। क्योंकि व्यक्ति हर काम अपना इगो बढ़ाने के लिए करता है। इगो मसाज के लिए करता है। उसे तभी मजा आता है जब उसके इगों की पुष्टि होती है। जब व्यक्ति का इगो गलित होने लग, उसका इगो गल जाए तब व्यक्ति ईश्वरत्व की ओर जाता है।

इसीलिए भगवान कृष्ण भगवदगीता में कहते हैं कि जिस व्यक्ति की अगर स्तुति की जाए तो भी वही भाव रखे, निंदा की जाए तो भी वही भाव रखे। अर्थात् उसका इगो खत्म हो गया। उसमें अहंकार खत्म हो चुका है अब वह ईश्वरत्व का पात्र है। वही कुर्बानी देनी है अपने इगो की कुर्बानी देनी है लेकिन व्यक्ति महंगी-महंगी चीजें लाकर ईश्वर के चरणों में रख देता है। कुर्बानी के नाम पर महंगे-महंगे बकरे खरीद लाएगा, महंगी चीजें खरीदकर और उसकी कुर्बानी देकर अपनी इगो को और बढ़ाएगा। ये ईश्वर से दूर ले जाने वाली चीजें हैं। धर्म को अगर धर्म बने रहना है और वास्तविक धर्म बनना है तो धर्म पर चलने वाले लोगों को आदर्श बनाना चाहिए। वही आदर्श जो स्वर्ण मृग ने दिया अपने आप को कुर्बान करने का। अपने अहंकार को कुर्बान करने का। अपने इगो को कुर्बान करने का।

जब तक यह आदर्श धर्म प्रस्तुत नहीं करता लोगों के सामने वह धर्म नहीं रह जाता फिर तो वह शक्ति की पराकाष्ठा हो जाता है। वह अत्याचार का पर्याय बन जाता है। यही भगवान राम का संदेश था। धर्म किस तरह धर्म रहे। धर्म है क्या। धर्म की प्रतिष्ठा हुई। भगवान कृष्ण भी गीता में यही कहते हैं जब-जब अधर्म बढ़ जाता है और धर्म की हानि होती है तब-तब मैं धर्म की प्रतिष्ठा करता हूं। अपने आचरण के द्वारा। वह भगवान का आचरण ही था जिसे भगवदगीता में, सनातन शास्त्रों में ईश्वर का अवतार कहा गया है। वही अवतार हैं जो धर्म को प्रतिष्ठित करते हैं। धर्म इस तरह होना चाहिए कि धर्म लोगों का बलिदान अपने लिए न ले। अपना बलिदान लोगों के लिए करने को तैयार हो। जो धर्म के श्रेष्ठ लोग हैं वो अपने जीवन का, अपने अहंकार का, अपनी इच्छाओं का, अपनी वासनाओं का बलिदान एक सामान्य सी तुच्छ सी मानी जाने वाली जनता के लिए एक गरीब व्यक्ति के लिए करने को तैयार हो। वही धर्म वास्तविक धर्म है। जो व्यक्ति से बलिदान मांगता है। वह कहता है कि ईश्वर के लिए कुर्बान हो जाओ, कुर्बानी दो वह धर्म नहीं है और न धर्म को वैसा होना ही चाहिए।

First Updated : Saturday, 24 December 2022
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