ॐलोक आश्रम: 75 साल के बाद भी भारत इतना पीछे क्यों है भाग-3

अगर हमें अपने देश को आगे बढ़ाना है। विश्व में नंबर वन बनाना है तो हमें अपने मूल्यों पर काम करना होगा ना कि यूरोपियन वैल्यूज पर। पाश्चात्य मूल्यों पर काम करके हम नंबर वन नहीं बन सकते। जो बैल के पीछे गाड़ी चलती है वह कितनी भी काबिल क्यों न हो वह बैल के आगे नहीं चल सकती।

calender

अगर हमें अपने देश को आगे बढ़ाना है। विश्व में नंबर वन बनाना है तो हमें अपने मूल्यों पर काम करना होगा ना कि यूरोपियन वैल्यूज पर। पाश्चात्य मूल्यों पर काम करके हम नंबर वन नहीं बन सकते। जो बैल के पीछे गाड़ी चलती है वह कितनी भी काबिल क्यों न हो वह बैल के आगे नहीं चल सकती। हम यूरोप को फॉलो करके कभी यूरोप से आगे नहीं निकल सकते। अमेरिका को फॉलो करके कभी अमेरिका से आगे नहीं निकल सकते। आज कष्ट की बात है लेकिन हमारी जो उच्चतम संस्थाएं हैं वो भी आज मूल्यों के लिए यूरोप और अमेरिका का मुंह ताकती हैं। जो मूल्य अमेरिका और य़ूरोप में वैध करार दे दिए जाते हैं तो हमारी उच्चतम संस्थाएं भी उन्हें वैध करार देती हैं। समलैंगिकता भारत में नहीं थी लेकिन यूरोप ने इसे एक अनिवार्य मानवीय लक्षण मानवीय पहलू बताया और भारत में वैध करार दे दिए गए। आज ऐसा लगता है कि अगर एक दिन यूथेनेशिया को यूरोप अगर वैध कर देगा तो भारत भी उसे वैध कर देगा। हमें दूसरों की नकल न करके हमें अपने मूल्यों पर जीवन जीना चाहिए। जो मूल्य हमारे हैं उसपर हमें तवज्जो देनी चाहिए और देखना चाहिए कि यहां के इंसान का पुराना इतिहास क्या है।

किस तरह से हमने पूरे विश्व पर राज किया है। हमारी सभ्यता कैसी थी हमारी संस्कृति कैसी थी। हमारी आर्थिक जीवन के मूल तत्व क्या थे। हमने किस तरह से जीवन जिया। अगर हम उन तत्वों को पकड़ेंगे, उनको लेकर आगे आएंगे और सनातन सभ्यता को लेकर आगे बढ़ेंगे। सबसे पहले हमें इतना साहस होना चाहिए कि हम गर्व के साथ कह सकें कि हम सनातनी हैं। हम हिन्दू हैं। यह हमारी सभ्यता है। हमें भी आज अपना एक देश चाहिए, एक संरक्षित देश चाहिए ताकि कोई धर्म के आधार पर हमारा उत्पीड़न न कर सके। हिन्दू धर्म ऐसा नहीं है, सनातन धर्म ऐसा नहीं है कि विरोध की बात करें लेकिन आज हम ऐसे परिवेश में अपने लिए देश नहीं बना सकते तो हम विश्वगुरु होने की बात करें, विश्व में नंबर वन होने की बात करें तो बहुत मामूली बात लगती है, बहुत छोटी बात लगती है।

ऐसा लगता है कि हमारा चिंतन का स्तर बहुत छोटा है। हम बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन काम नहीं कर पाते। अगर हमें विश्वगुरु बनना है तो सबसे पहले हमें अपने आप को सराहना होगा। अगर हम अपने आप को नहीं सराहेगें, हम इस बात को नहीं कह सकेंगें कि सनातन श्रेष्ठ है भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है और भारत को सनातन राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए। अगर यह नहीं हो पाएगा तो विश्वगुरु बनने की, विश्व में नंबर वन बनने की बातें कपोल कल्पनाएं बनी रहेंगी और चर्चा का विषय बनी रहेंगी। सुनने में बहुत अच्छी बातें लगेंगी। 

संस्कृत में एक श्लोक है जिसका तात्पर्य है कि एक शेर की शादी हो रही थी उसमें ऊंट और गधे दोनों आमंत्रित थे। दोनों शादी में शरीक हुए दोनों डांस करने लगे दोनों गाना गाने लगे तो ऊंट ने गधे से कहा कि वाह क्या सुरीला गाना गाते हो तो गधे ने ऊंट से कहा कि वाह क्या बढ़िया डांस करते हो आप। आप तो सर्वश्रेष्ठ हो। दोनों एक-दूसरे को सर्वश्रेष्ठता का तमगा देने लगे। 

First Updated : Sunday, 04 December 2022