Karnataka के gauribidanur rural police station में हुई बिल्लियों की तैनाती
पुलिस का काम है आपके अधिकारों का संरक्षण और समाज में अपराध पर लगाम लगाना लेकिन कर्नाटक में एक अजीबो गरीब मामला सामने आया है. अपराधियों पर नकेल कसने वाली पुलिस इतनी मजबूर हो गई की उसे बिल्लियों का सहारा लेना पड़ रहा है.
पुलिस का काम है आपके अधिकारों का संरक्षण और समाज में अपराध पर लगाम लगाना लेकिन कर्नाटक में एक अजीबो गरीब मामला सामने आया है. अपराधियों पर नकेल कसने वाली पुलिस इतनी मजबूर हो गई की उसे बिल्लियों का सहारा लेना पड़ रहा है. कर्नाटक के गौरीबिदनूर रूरल पुलिस स्टेशन ने अपने थाने में बिल्लियों की थाने में तैनाती की है. जी हां जिस पुलिस के नाम से ही अपराधी थरथर कांपने लगते हैं उसने अपने थाने में बिल्ली की तैनाती कर दी है. ये पूरा मामला कर्नाटक के गौरीबिदनूर रूरल पुलिस स्टेशन का है. जहां पर पुलिस अहम मामलो से जुड़े फाइलों की ही रक्षा नहीं कर पा रही थी. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि पुलिस को बिल्ली की ही जरूरत पड़ गई.
दरअसल गौरीबिदनूर रूरल पुलिस स्टेशन में चूहों के कोहराम से परेशान होने के बाद उन पर लगाम लगाने के लिए दो बिल्लियों की थाने में तैनाती की है. इस पुलिस स्टेशन के सूत्रों के मुताबिक जब चूहों ने बड़े अहम मामलों की फाइलों को कुतरना शुरू किया तो उसके बाद उन्हें इस समस्या का स्थाई समाधान हासिल करने करने के लिए कुछ बिल्लियों का इस्तेमाल करना पड़ा. इस बात का खुलासा आरटीआई के जरिए हुआ है. एक आरटीआई (RTI) के जरिए पूछे गए सवाल का जवाब मिलने से खुलासा हुआ है कि राज्य सरकार ने साल 2010 से 2015 के बीच चूहों को पकड़ने के लिए 19.34 लाख रुपये खर्च किए थे.
गौरीबिदनूर ग्रामीण पुलिस स्टेशन के उप-निरीक्षक विजय कुमार ने बताया कि, 'हमारे थाने के पास ही एक झील है और इसलिए ऐसा लगता है कि चूहों ने हमारे थाने को रहने के लिए एक बेहतरीन जगह पाया. उन्होंने बताया कि पहले हमने अपने थाने में सिर्फ एक बिल्ली की तैनाती की थी जिसकी वजह से चूहों से होने वाला नुकसान कम हो गया था. इसके बाद हम हाल ही एक और बिल्ली लाए हैं.' मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उनकी टीम दोनों बिल्लियों को रोजाना दूध और अन्य खाद्ध सामग्री देती है. अब ये बिल्लियां एक परिवार की तरह रहती हैं. राजधानी बेंगलुरु से करीब 80 KM की दूरी पर मौजूद इस थाने में कामकाज की शुरुआत 2014 में हुई थी.
प्रशासनिक अधिकारियों के मुताबिक कर्नाटक में कई सरकारी विभाग चूहे और मच्छरों के प्रकोप से बचने के लिए हर साल अच्छी खासी रकम खर्च करते हैं. इसी सूचना का अधिकार यानी RTI से मिली जानकारी के मुताबिक अकेले कर्नाटक परीक्षा प्राधिकरण (KEA) अकेले ही हर साल चूहों और मच्छरों से बचाव के लिए सालाना करीब 50,000 रुपये खर्च करता है. गौरतलब है कि भारतीय रेलवे के कई मंडलों में भी चूहों की वजह से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए कई उपाय किए जाते हैं. इस काम में भी रेलवे कई सालों से अच्छी खासी रकम खर्च कर रहा है.