ॐलोक आश्रम: कर्म कैसे करना चाहिए है? भाग-1

जब हम आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ते हैं तो हर संत की, हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि प्रभु के दर्शन हों, प्रभु से मिलन हो, आत्मसाक्षात्कार हो। प्रभु के दर्शन को लेकर लोग लालायित रहते हैं और उसके लिए सारे जतन करते हैं।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

जब हम आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ते हैं तो हर संत की, हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि प्रभु के दर्शन हों, प्रभु से मिलन हो, आत्मसाक्षात्कार हो। प्रभु के दर्शन को लेकर लोग लालायित रहते हैं और उसके लिए सारे जतन करते हैं। लोग कहते हैं कि इसके लिए प्रभु का भजन करो, सुमिरन करो, अच्छे कर्म करो, सच्ची आस्था रखो और भगवान कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि तुम युद्ध करो। अर्जुन बड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ हैं और वो कृष्ण से कह रहे हैं कि आप युद्ध करने कह रहे हैं। उसके बाद बहुत सारे प्रश्न हुए। भगवान ने अर्जुन को ज्ञान मार्ग बताया।

कर्म के बारे में बताया। इसी क्रम ये भी बताया कि कर्म करना कैसे है। जो भी कर्म करेंगे उसका कुछ न कुछ परिणाम होगा तो किस तरह से कर्म किए जाएं कि कर्म परिणामों को उत्पन्न न करे। अगर कर्म अच्छे परिणाम उत्पन्न करेंगे तो उसके अच्छे फल होंगे, उनको भोगने के लिए फिर पुनर्जन्म लेना पडेगा। अगर कर्म बुरे परिणाम उत्पन्न करेंगे तो उसके बुरे फल होंगे और इसको भी भोगने के लिए पुनर्जन्म लेना पड़ेगा तो किस तरह से कर्म किए जाएं कि पुनर्जन्म न लेना पड़े। ये हमारे सनातन धर्म का बड़ा गहरा दार्शनिक सिद्धांत है। जहां दूसरे ये मानते हैं कि मनुष्य का या सभी जीवों का ये पहला और अंतिम जन्म है और खुदा ने सबके लिए एक-एक रूह उत्पन्न किया है और जब व्यक्ति का अंतिम समय हो जाएगा उसके बाद व्यक्ति सशरीर इंतजार करेगा कयामत का।

हमारा सनातन धर्म पुनर्जन्म के सिद्धांत में विश्वास करता है और आज बहुत सारे वैज्ञानिक भी इसको मानने लगे हैं, बहुत सारे शोध हुए हैं और शोध आगे भी हो रहे हैं। हमारा सनातन धर्म का जो सिद्धांत है वो वैज्ञानिक हो रहा है, पुनर्जन्म पर बहुत सारे लोग विश्वास कर रहे हैं। अगर हम पुनर्जन्म को मानते हैं तो और आगे बढ़ते हैं कि मनुष्य के जीवन का लक्ष्य क्या है। परमात्मा का साक्षात्कार कैसे हो, कर्म क्यों और कैसे किए जाएं। मनुष्य का अंतिम लक्ष्य क्या है। भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि यज्ञ के अतिरिक्त कोई भी कर्म बंधन का कारण है। कोई भी कर्म करो वह यज्ञ को समर्पित कर दो। यज्ञ ही विष्णु हैं। यज्ञ का अर्थ है साक्षात परमपिता परमेश्वर। आप जो भी कर्म करते हो वो परमेश्वर को समर्पित करके कर्म करो। उसके अलावा अगर कोई काम आप करते हो वो संसार में बंधन का कारण है। अगर आपने अपने कर्म को प्रभु को समर्पित कर दिया तो कर्म हवनकुंड में हवि की तरह भस्म हो जाते हैं।

जिस तरह आप यज्ञ करते हो आपके पास हवन सामग्री होती है आप हवन सामग्री की हवि डालते हो और उसे अग्नि को समर्पित कर दिया। माना जाता है कि अग्नि उसे द्विलोकों में ले जाती है। उसी तरह आप अपने कर्म को यज्ञ में डाल दो। जिस तरह आपका हवन भस्म हो जाता है उसी तरह से आपके कर्म भस्म हो जाते हैं। आपके कर्म परिणाम को उत्पन्न नहीं करते क्योंकि आपने सभी कर्मों को यज्ञ में भस्मीभूत कर दिया है। यज्ञ में समर्पित कर दिया है प्रभु के चरणों में रख दिया है। इसलिए यज्ञ के लिए सारे कर्म करो और संग से, आसक्ति से मुक्त होकर आचरण करो। किसी के प्रति न कोई बैर रखो और न किसी के प्रति कोई प्रेम रखो। निष्काम भाव से कर्म करो। न किसी को खुश करने के लिए कर्म करो और न किसी को दुखी करने के लिए कर्म करो और जो भी कर्म करो वह सारे कर्म यज्ञ को समर्पित कर दो, प्रभु को समर्पित कर दो। प्रजापति ब्रह्मा ने यज्ञ से ही सारी सृष्टि, सारे संसार की रचना की है। यज्ञ से रचना करने का तात्पर्य क्या है, जिस तरह हम पदार्थों को हवन करते हैं और पदार्थों का अग्नि में जाकर उसका स्वरूप परिवर्तित हो जाता है। 

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20 August 2022, 03:52 PM IST

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