ॐ लोक आश्रम: क्या हूं मैं, क्या मैं यह शरीर हूं या इससे इतर कुछ हूं भाग-3

अपने स्वरूप को भूल गया है। हम इस शरीर से आबद्ध होकर इस शरीर के सुख को अपना सुख और इस शरीर के दुख को अपना दुख समझ लेते हैं।

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अपने स्वरूप को भूल गया है। हम इस शरीर से आबद्ध होकर इस शरीर के सुख को अपना सुख और इस शरीर के दुख को अपना दुख समझ लेते हैं। समस्या यहां आ जाती है। जब हम अपने स्वरूप को जानने का प्रयास करते हैं तो अपने आप को अपग्रेड करते हैं। वस्तुत: जब कोई काम आप तन्मय होकर करते हो वो आपके ध्यान की अवस्था है। जब आप सबकुछ भूल जाएं वही ध्यान की अवस्था है। वही तन्मयता आपको अपग्रेड करती है आपके सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करती है वही तन्मयता आनी चाहिए।

वो तन्मयता तभी आएगी जब आप न तो प्रलोभनों के वश में आकर आगे बढ़ें और न किसी चीज से डरें। जब आप डर अपना भय और लालच इन सबों से परे हो जाते हैं इन सबों से ऊपर उठ जाते हैं और एक विंदु पर केन्द्रित हो जाते हैं वही आपके तन्मयता की अवस्था है वही आपके ध्यान की अवस्था है और वही एक ऐसी अवस्था है जो आपके मस्तिष्क की आपके अन्तर आत्मा की सुषुप्त शक्तियों को जागृत करेगा।

शक्तियां बहुंत जारी है अनंत शक्तियां हैं। हमारी आत्मा अनंत शक्तियों से युक्त है, अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत सुख इनको भगवान महावीर अनंत चतुष्टय कहते हैं उनसे युक्त हैं लेकिन हमारे अज्ञान के कारण वो सीमित हो गई हैं और उसी सीमित होने के कारण हम बहुत सीमित रूप मे रहते हैं जिसने इन शक्तियों को जागृत कर लिया जिस स्वरूप में जागृत कर लिया वो उतना ही समाज में देश में उठ गया और जिसने पूर्ण रूप से जागृत कर लिया वो बुद्ध हो गया तो इसी दिशा में हमें आगे बढ़ना है और धीरे-धीरे अपनी शक्तियों को जागृत करना है

First Updated : Saturday, 04 February 2023