ॐ लोक आश्रम: हम असफल क्यों होते हैं? भाग-2

कबीरदास ने कहा कि प्रभु हमारे साथ हैं और उनके अलावा हमें किसी चीज की जरूरत ही नहीं है। शिष्य ने कहा कि इसको रख लेते हैं।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

हाइलाइट

  • ॐ लोक आश्रम: हम असफल क्यों होते हैं? भाग-2

कबीरदास ने कहा कि प्रभु हमारे साथ हैं और उनके अलावा हमें किसी चीज की जरूरत ही नहीं है। शिष्य ने कहा कि इसको रख लेते हैं। कबीरदास ने समझाया कि इसे मत रखो ये बहुत भारी है, इसका वजन तुम उठा नहीं पाओगे। शिष्य ने कहा कि ये छोटा सा माणिक्य है जेब में कहीं पड़ा रहेगा इसे रख ही लेते हैं। कोई मुसीबत या विपत्ति आ जाएगी तो इसको बेचकर हम काम चला लेंगे।

कबीरदास ने शिष्य से कहा कि सुखों में बड़ा भार होता है ये जो माणिक्य तुम्हें छोटा सा दिख रहा है इसमें बड़ा भार है और इस भार को तुम उठा नहीं पाओगे। शिष्य ने कहा कि आप इजाजत दें मैं इसे लेकर चलूंगा। कबीरदास ने शिष्य से कहा जैसी तुम्हारी इच्छा और ये कहकर कबीर उसके साथ चल दिए। कबीरदास एक दिन में कम से कम 20 कोस चलते थे जो कि आजकल 40 किलोमीटर होता है। शिष्य भी पीछे-पीछे चलते गए लेकिन रास्ते में वो ये देखता चलता था कि माणिक्य कहीं गिर तो नहीं गया। 

20 कोस चलने के बाद लोगों ने खाना खाया सारे सो गए लेकिन उस शिष्य को नींद नहीं आई इस बात से कि कहीं कोई चोर न आ जाए उसका माणिक्य न चुराकर ले जाए। माणिक्य वो काफी संभालकर रखता था। एक दिन बीते, दो दिन बीते, चार दिन बीते एक दिन कबीरदास ने उसे कहा कि क्या बात है बड़े उदास हो, दुबले होते जा रहे हो, थके-थके से लग रहे हो। आखिर तुम्हें क्या दिक्कत हो गई। 

उसने कहा कि नींद नहीं आ रही है, डर लग रहा है कि कही ये माणिक्य गिर तो नहीं जाएगा, कहीं इसे कोई चुरा तो नहीं लेगा। इसकी बड़ी चिंता रहती है। कबीरदास ने कहा कि मैंने कहा था न सुखों में बहुत भार होता है। ये माणिक्य तुम्हारे शरीर में नहीं है यह माणिक्य तुम्हारे दिमाग में है। कोई भी धन हो कोई भी दौलत हो कोई भी सफलता हो वो इसी तरह हमारे दिमाग में चढ़ जाती है इसका अपना एक भार होता है और वो भार ऐसा होता है कि उसे हम खोने से डरते हैं। वो पद वो प्रतिष्ठा जो हमें बहुत संघर्ष बाद मिलती है उन सबका एक बहुत बड़ा भार होता है 
 

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04 April 2023, 06:25 PM IST

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