जब देश को आजाद कराने हीरामंडी से बाहर निकली थीं 'तवायफें'
Heeramandi: मनोरंजन की दुनिया में इन दिनों हीरामंडी का जिक्र हर तरफ हो रहा है, भंसाली की ये सीरीज लोगों को बहुत पसंद आ रही है.
Heeramandi: जिस भव्य अंदाज में संजय लीला भंसाली ने लगातार पीरियड ड्रामा कहानियों को पर्दे पर दिखाया है, बॉलीवुड में शायद ही कोई फिल्म निर्माता उस स्तर तक पहुंच सकता है. और इस बात की पुष्टि उनके पहले ओटीटी शो 'हीरामंडी' के ट्रेलर से एक बार फिर हो गई है. 'हीरामंडी' को जिस तरह से फिल्माया गया है, उसका हर एक सीन आपको रोमांचित कर सकता है. इस सीरीज में हीरामंडी में मेहफिलें सजने के अलावा एक दबे हुए इतिहास को भी खोजा गया है.
हीरामंडी की औरतों मे मांगी आजादी
हीरामंडी में कई तवायफें राज करती थी, कुछ नवाबों के दिलों पर राज करती थी तो कोई अंग्रेजों को अपनी उंगलियों पर नचाती थीं. लेकिन हीरामंडी सिर्फ मर्दों को खुश करने तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उसमें कुछ तवायफें ऐसी भी थीं जो मर्दों के साथ सोती थी फनको खुश करती थी ताकि वो देश की आजादी में योगदान देने के लिए पैसे इक्टठा कर सकें. आजादी से पहले लाहौर में इस हीरामंडी की तवायफों को नीची नजर से देखा जाता था, लेकिन भंसाली ने जिस तरह से इनके दबे इतिहास को दिखाया है उससे इन औरतों के लिए लोगों के दिल में इज्जत बढ़ जाएगी.
रुला देगा लास्ट एपिसोड
हीरामंडी में सभी ने तवायफों का एक बेहतरीन रोल अदा किया है, लेकिन इसमें दिल पर छाप छोड़ी हैल बिब्बो जान ने. मल्लिकाजान की बड़ी बेटी बिब्बो जान जिसका हर कोई दीवाना था, लेकिन वो देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर काम कर रही थी. जिस तरह से बिब्बो जान का अंत हुआ वो किसी के भी दिल में गर्व पैदा करने वाला सीन था. लास्ट एपिसोड में एक तरफ सारी तवायफें सड़कों पर उतर आती हैं, दूसरी तरफ एक अंग्रेज अफसर की एक तवायफ हत्या करती है, और तीसरी तरफ बिब्बो जान को देश की आजादी के लिए आवाज उठाने और एक अंग्रेज अफसर को मारने के जुर्म में फांसी पर चढ़ा दिया जाता है.
औरतें आज भी लड़ रही अपनी आजादी की लड़ाई
हीरामंडी की औरतों ने जब अपनी महफिलों को रोक कर हाथ में आजादी की मशालें लेकर सड़कों पर उतरती हैं, तो एक समय को आपकी आंखों में आंसू भी आ सकते हैं. भंसाली ने लास्ट में एक लाइन कही, जिसमें उन्होंने कहा कि ''हीरामंडी की औरतों को आजादी का मतलब बताने की जरूरत नहीं पड़ी, वो इसको खुद ही समझ गईं, इसके बाद 1947 को देश तो आजाद हो गया लेकिन औरतें आज भी अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रही हैं.''