Uttarakhand News : उत्तराखंड में इस समुदाय पर लागू नहीं होगा UCC, जानिए क्या है इसकी वजह

UCC in Uttarakhand : उत्तराखंड विधानसभा में 7 फरवरी 2024 को समान नागरिक संहिता विधेयक पास हो गया. इस पर मुहर लगते ही यह कानून बन जाएगा. अब सभी धर्मों में के लोगों के लिए शादियों, तलाक, मेंटेनेंस और विरासत का एक कानून हो जाएगा. 

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UCC in Uttarakhand : उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता (UCC) बिल पास हो चुका. इस कानून के साथ ही राज्य मं बहु विवाह पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी. नए कानून के तहत लिव-इन में रहने वालों को भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा. लेकिन इसी राज्य की कुछ जनजातियां ऐसी हैं, जिन पर UCC कानून लागू नहीं होगा. महिला-प्रधान इन समुदायों में महिलाएं भी एक साथ कई शादियां कर सकती हैं.

7 फरवरी 2024 को विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक उत्तराखंड 2024 पास हो गया. बस इस पर मुहर लगनी बाकी है. इस कानून के तहत सभी धर्मों में शादियों, तलाक, मेंटेनेंस और विरासत के लिए 

कौन सी जनजातियां है शामिल 

उत्तराखंड सरकार के पोर्टल के अनुसार, राज्य में पांच समूहों को जनजाति की श्रेणी में रखा गया. इनमें भोटिया, जौनसारी, बुक्शा, थारू और राजी शामिल हैं. साल 1967 में इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया  था. इनकी आबादी राज्य में करीब 3 प्रतिशत है, जिनमें से ज्यादातर गांवों में रहती हैं. अगर उन्हें भी यूसीसी में शामिल कर लिया जाए तो जनजातीय परंपराओं की खासियत खत्म होने लगेगी. बता दें कि इनमें से कई जातियों में एक से ज्यादा शादियों का चलन रहा.

खुद को पांडवों के करीब बताते हैं जौनसारी

जौनसारी जनजाति में महिलाओं के बहुविवाह का चलन है और इसको पॉलीएंड्री कहते हैं. यह समुदाय चकराता तहसील में रहता है. कई बार जौनसार बावर भी कहा जाता है, लेकिन ये दोनों अलग कम्युनिटी हैं. जौनसारी खुद को पांडवों के वंशज मानते हैं. वहीं बावर खुद को कौरवों का वंशज मानते हैं. इन दोनों में शादियां भी बहुत कम होती हैं. लेकिन दोनों में शादियों को लेकर एक बात कॉमन है. इनमें बहुपतित्व की परंपरा रही. महिलाएं आमतौर पर एक घर में ही दो या कई भाइयों की पत्नियों के रोल में रहती थीं. इस शादी से हुई संतानों को बड़े भाई की संतान या कॉमन माना जाता.


क्यों शुरू हुआ होगा ये चलन? 

इस चलन के पीछे ऐसा माना जाता है कि पहाड़ी इलाकों में जमीनों की कमी होती है. लोग खेती-बाड़ी के लिए बहुत मुश्किल से जमीन बना पाते. ऐसे में अगर परिवार बंट जाए तो जमीन के भी कई छोटे हिस्से हो जाएंगे और उसका फायदा किसी को नहीं मिलेगा. ऐसे में प्रैक्टिकल ढंग से भी ऐसा चलन आया होगा. एक तर्क यह भी है कि एक पति अलग कमाने-खाने के लिए बाहर जाए तो घर की देखभाल उतनी ही जिम्मेदारी से दूसरा पति कर सके. दूसरी जनजातियों में बहुपत्नित्व दिखता रहा जैसे कि थारू जाति में महिलाओं के अलावा पुरुष कई शादियां कर सकते हैं. लेकिन ये कोई पक्का नियम नहीं है.

सरकार ने इनको कैसे किया चिह्नित

राज्य सरकार ने ड्राफ्ट बनाने के पहले उन क्षेत्रों का दौरा किया, जहां यह जनजातियां रहती हैं. सर्वे टीम ने इनकी विवाह परंपराओं को समझने के बाद ही इन्हें UCC से अलग रखा. सर्वे टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मुख्यधारा में रहते लोगों की शादियों और परंपराओं को, जनजातियों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, वरना उनकी विशेषता खत्म हो जाएगी. 

उत्तराखंड में कौन सी ट्राइब कितनी है?

 उत्तराखंड में थारू जनजाति के लोग सबसे ज्यादा हैं. इनकी कुल अनुसूचित जनजाति में 33% आबादी है. इसके बाद जौनसारी की आबादी 32 प्रतिशत है. बुक्सा जनजाति 18.3 फीसदी है. भोटिया केवल 14 प्रतिशत हैं. वहीं राजी जनजाति की आबादी कम है. भोटिया को राज्य की सबसे कम विकसित जाति भी माना जाता रहा. इनके कल्चर में तिब्बत और म्यांमार की भी झलक मिलती है.

First Updated : Thursday, 15 February 2024
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